Saturday, May 12, 2012

Rani Gaidinliu......................रानी गाइदिनल्यू



Rani Gaidinliu......................रानी गाइदिनल्यू 


Rani Gaidinliu
The True Freedom Fighter
रानी गाइदिनल्यू 

रानी गाइदिनल्यू (जन्म- 26 जनवरी, 1915 ई.) ने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए नागालैण्ड में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया था।झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान ही वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए इन्हें 'नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई' कहा जाता है। जब रानी गाइदिनल्यू को अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण अंग्रेज़ों ने गिरफ्तार कर लिया, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कई वर्षों की सज़ा काट चुकी रानी को रिहाई दिलाने के प्रयास किए। किंतु अंग्रेज़ों ने उनकी इस बात को नहीं माना, क्योंकि वे रानी से बहुत भयभीत थे और उन्हें अपने लिए ख़तरनाक मानते थे।
जन्म तथा स्वभाव
'नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई' कही जाने वाली रानी गाइदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी, 1915 ई. को मणिपुर राज्य के पश्चिमी ज़िले में हुआ था। वह बचपन से ही बड़े स्वतंत्र और स्वाभिमानी स्वभाव की थीं। 13 वर्ष की उम्र में वह नागा नेता जादोनाग के सम्पर्क में आईं। जादोनाग मणिपुर से अंग्रेज़ों को निकाल बाहर करने के प्रयत्न में लगे हुए थे। वे अपने आन्दोलन को क्रियात्मक रूप दे पाते, उससे पहले ही गिरफ्तार करके अंग्रेज़ों ने उन्हें 29 अगस्त,1931 को फांसी पर लटका दिया।
क्रांतिकारी जीवन
अब स्वतंत्रता के लिए चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व बालिका गाइदिनल्यू के हाथों में आ गया। उसने गांधी जी के आन्दोलन के बारे में सुनकर सरकार को किसी प्रकार का कर न देने की घोषणा की। उसने नागाओं के कबीलों में एकता स्थापित करके अंग्रेज़ों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए क़दम उठाये। उसके तेजस्वी व्यक्तित्व और निर्भयता को देखकर जन-जातीय लोग उसे सर्वशक्तिशाली देवी मानने लगे थे। नेता जादोनाग को फांसी देने से लोगों में असंतोष व्याप्त था, गाइदिनल्यू ने उसे सही दिशा की ओर की मोड़ा। सोलह वर्ष की इस बालिका के साथ केवल चार हज़ार सशस्त्र नागा सिपाही थे। इन्हीं को लेकर भूमिगत गाइदिनल्यू ने अंग्रेज़ों की फ़ौज का सामना किया। वह गुरिल्ला युद्ध और शस्त्र संचालन में अत्यन्त निपुण थी। अंग्रेज़ उसे बड़ी खूंखार नेता मानते थे। दूसरी ओर जनता का हर वर्ग उसे अपना उद्धारक समझता था।
गिरफ़्तारी
इस आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेज़ों ने वहाँ के कई गांव जलाकर राख कर दिए। पर इससे लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। सशस्त्र नागाओं ने एक दिन खुले आम 'असम राइफल्स' की सरकारी चौकी पर हमला कर दिया। स्थान बदलते, अंग्रेज़ों की सेना पर छापामार प्रहार करते हुए गाइदिनल्यू ने एक इतना बड़ा क़िला बनाने का निश्चय किया, जिसमें उसके चार हज़ार नागा साथी रह सकें। इस पर काम चल ही रहा था कि 17 अप्रैल, 1932 को अंग्रेज़ों की सेना ने अचानक आक्रमण कर दिया। गाइदिनल्यू गिरफ्तार कर ली गईं। उस पर मुकदमा चला और कारावास की सज़ा हुई। उसने चौदह वर्ष अंग्रेज़ों की जेल में बिताए।
अंग्रेज़ों का भय
1937 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को असम जाने पर गाइदिनल्यू की वीरता का पता चला तो उन्होंने उसे 'नागाओं की रानी' की संज्ञा दी। नेहरू जी ने उसकी रिहाई के लिए बहुत प्रयास किया, लेकिन मणिपुर के एक देशी रियासत होने के कारण इस कार्य में सफलता नहीं मिली। अंग्रेज़ अब भी उसे ख़तरनाक मानते थे और उसकी रिहाई से भयभीत थे।
रिहाई तथा सम्मान
1947 में देश के स्वतंत्र होने पर ही वह जेल से बाहर आईं। नागा कबीलों की आपसी स्पर्धा के कारण रानी को अपने सहयोगियों के साथ 1960 में भूमिगत हो जाना पड़ा था। स्वतंत्रता संग्राम में साहसपूर्ण योगदान के लिए प्रधानमंत्री की ओर से ताम्रपत्र देकर और राष्ट्रपति की ओर से 'पद्मभूषण' की मानद उपाधि देकर उन्हें सम्मानित किया गया। 


Rani Gaidinliu - The True Freedom Fighter
Rani Gaidinliu (26 January 1915 - 17 February 1993) - was the first female freedom fighter from Manipur, India. 'Free India' was a dream of Rani Gaidinliu under the British rule. She was honoured as a 'freedom fighter' and was also awarded a 'Padma Bhushan'. Late Prime Minister of India, Jawaharlala Nehru, described her as the 'Daughter of the hills' or Queen of her people. She was also known as 'Rani Ma'.

Rani Gaidinliu was born to Lothonang Pamei (father) and Kachaklenliu (mother) in Longkao (Nungao) village of Manipur. She was the 5th child among her six sisters and a brother. Since her childhood days, Gaidinliu was known for her dynamic, multifaceted and virtuous personalities.

The year Rani Ma was born, Manipur, along with rest of the country was the victim of British colonial rule. In 1927, when she was just 13 years old, she met prominent local leader Haipou Jadonang at Puilon Village. And persuaded by his ideologies and principles, she launched the revolutionary movement against the British in the same year.

In 1931, while returning with Gaidinliu from 'Bhubon Cave' in Cachar after worshiping God, Jadonang was captured by the British. After he was hanged on Aug 29, 1931, by the British, Gaidinliu took over the leadership and challenged the British officials. When The British Govt. tried to suppress her movement, she went underground.

The army made a house to house search. Though the British announced a reward of Rs 500 to anybody who would inform them about her whereabouts, the entire village stood together in support of Rani. Finally the British Govt. captured her on 17 October, 1932 in Poilwa (Pulomi) Village (present Nagaland), and sentenced her to life imprisonment. Rani Gaidinliu was just 16 years old then.

Pandit Jawaharlal Nehru met her at Shillong Jail in 1937 and described Gaidinliu as the daughter of the Hills and gave her the title of “Rani Gaidinliu” or Queen of her people. 

After serving the prison term of 14 years in various jails in Guwahati, Aizawl,Tura, Shillong and elsewhere, 'Rani Ma' was freed in 1947 after India gained freedom. She was however not allowed to return home at her native village in Manipur that she stayed at Vimrap Village of Tuensang with her younger brother Marang till 1952. It was a tearful re-union of sister and brother when they could not communicate well in their mother tongue at that time. (Due to long separation of nearly 2 decades).

After her release she organised a resistance movement against the Naga National Council (NNC) )-led insurgents in 1966 and had to go underground again. On the request of Central government and state governments of Nagaland and Manipur, she came over-ground and stayed in Kohima from 1966 to 1992.

The travesty is that she was not allowed to visit her people for whose freedom, religion and culture she sacrificed her prime of youth. Same reason was given that if she was allowed to return to her 'Heraka' people, the movement for preservation, protection and promotion of her forefather’s religion and eternal culture would catch-up momentum. A section the Naga society, who was under deep influence of christianity, was opposed to 'Heraka movement' and Rani Gaidinliu. Rani Ma was kept in Yimrup village of Tuensang district; nearly 300 km away from her people.

It was a matter of regret that leaders of Nagaland condemned her as ‘kampai’ (kachcha Naga) and Christian missionaries cursed her as the worshiper of the 'satan' (devil) and heathen.

Rani Ma reformed the traditional relilgion and named it “Heraka” which means “Pure”. She propounded the worship of philosophical God —

the Almighty. She evolved the scientific mode of celebration of various traditional festivals of Nagas. There lies the greatness of Rani Gaidinliu.

“Invasion by foreign religion and foreign culture will pose danger to Naga identity. Beware of this danger”.
—Rani Gaidinliu had said.

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