Saturday, May 12, 2012

Chetna sinha,,,,,,,,,,,,चेतना सिन्हा







Chetna sinha- चेतना सिन्हा




Recipient of the 13th IMC - Ladies’ Wing Jankidevi Bajaj Puraskar - 2005 for Rural Entrepreneurship


भारत की पिछली यात्रा में बराक ओबामा को कई लोगों ने प्रभावित किया. दिलचस्प की बात यह है कि वापस जाने के बाद भी वे उनलोगों को नहीं भूल सके हैं और उनसे सम्पर्क करते हैं. ऐसी ही एक महिला है चेतना सिन्हा जो महाराष्ट्र के सतारा जिले में गरीब महिलाओं के लिए प्रेरणा और अशा के स्रोत बन गई हैं.
श्रीमती सिन्हा एक सहकारी बैंक - ’मान देशी महिला सहकारी बैंक’ – चलाती है जो महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिए है. यह 1997 में स्थापित हुआ और तब से सूक्ष्म वित्त में अग्रणी रहा है.
अब अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय संबंधों की अवर सचिव लाएल ब्रेनार्ड इस बैंक की यात्रा करने वाली हैं जो वहां सूक्ष्म वित्तपोषण के गुर सीखेंगी. एक अनुवर्ती के रूप में, जाहिर है, ओबामा ने उन्हें भारत में ग्रामीण व्यापार मॉडल का अध्ययन के लिए भेजा है.
इस बैंक में एक लाख से अधिक ग्राहक हैं. बैंक महिलाओं के लिए समूह-ऋण, बचत, बीमा और पेंशन की योजनायें चलाता है. श्री ब्रेनार्ड विशेष रूप से बैंक द्वारा ग्रामीण महिलाओं के लिए मोबाइल बिजनेस स्कूल (MBSRW) शुरू करने की पहल देखने के लिए गये हैं.

अब कुछ चेतना सिन्हा की सक्शियत के बारे में...
चेतना गाला सिन्हा.... जिसने न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं को जागृत किया बल्कि उन्हें जीने का नया आयाम भी दिया। उन्होंने महाराष्ट के सतारा जिले की ग्रामीण महिलाओं को अपने दम पर इस मुकाम तक पहुंचाया कि आज जिसकी बदौलत तकरीबन सवा लाख से भी ज्यादा ग्रामीण महिलाएं अपनी रोजी-रोटी कमा रही हैं। उन्होंने महाराष्ट के सतारा जिले के मसवाड गांव में स्वयंसेवी ग्रामीण महिलाओं की मदद से 1997 में एक ऐसे बैंक की शुरूआत की।

जिसका उद्देश्य उस गांव की अनपढ़ महिलाओं को आर्थिक मदद व बचत के लिए प्रेरित करना था।

चेतना सिन्हा उच्च शिक्षा प्राप्त लेकिन जमीन से जुड़ी हुई महिला हैं। एक अर्थशास्त्री, एक किसान, एक समाजशास्त्री इन सभी विशेषणों पर चेतना खरी उतरती हैं। भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के कई पिछड़े और सूखा प्रभावित इलाकों में इन्होंने जिस लगन और मेहनत से सामाजिक बदलाव लाया वह सराहनीय है। मनदेशी महिला सहकारी लिमिटेड, एक माइक्रो एंटरप्राइज डेवलपमेंट बैंक की संस्थापक और अध्यक्ष चेतना गाला सिन्हा ने ग्रामीण महिलाओं के लिए जो विकासात्मक कदम उठाए हैं, उसके लिए उन्हें भारतीय सरकार और विभिन्न गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से सम्मानित भी किया गया। चेतना जी ने मनदेशी फाउंडेशन, जो कि एक गैर सरकारी संस्थान है, की स्थापना भी की।

चेतना जी का जन्म मुंबई में हुआ। वह मुंबई में ही पली बढ़ी और वहीं शिक्षा दीक्षा भी प्राप्त की। चेतना ने मुंबई विश्वविद्यालय से साल 1982 में अर्थशास्त्र और वाणिज्य में मास्टर ऑफ आर्ट्स किया। और साल 2002 में वह येल वल्र्ड फैलो भी रहीं। उसके बाद वे अपने छात्र जीवन से ही कई सामाजिक आंदोलनों में हिस्सा लेने लगीं। इसी दौरान वे जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़ी। इस आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।

इस आंदोलन में उन्होंने सीखा कि समाज में बदलाव किस तरह लाया जाता है? इस बदलाव के लिए लोगों को एक साथ किस तरह जोड़ा जाता है? उनमें कैसे एकजुटता पैदा की जाती है? यह सब सीखते-सीखते वह यह धारणा बना चुकी थी कि एक दिन वह भी ऐसा ही कोई कार्य अवश्य शुरू करेंगी जिससे समाज में बदलाव लाया जा सके और ग्रामीण महिलाओं की मदद की जा सके। इसी दौरान उनकी भेंट किसान आंदोलन से जुड़े विजय सिन्हा जी से हुई, जिसकी बदौलत वह किसान आंदोलन से भी जुड़ सकी। विजय जी संपर्क में आकर वह उनसे इतनी प्रभावित हुईं कि उन्हें अपना जीवन साथी बनाने का फैसला तक कर डाला। विजय एक किसान परिवार से संबंध रखते थे और इस वजह से दोनों में काफी असमानताएं थी। सबसे बड़ी असमानता तो उनकी जाति थी। इन सभी असमानताओं को चेतना जी ने चुनौती मानकर स्वीकार किया और जिंदगी की कठिनाइयों का डटकर मुकाबला किया।

इसी दौरान चेतना ने न जाने जीवन के कितने ही उतार चढ़ावों को देखा। किसान आंदोलन में थी तब उन्होंने महसूस किया कि कृषि क्षेत्र के हालात काफी गंभीर थे, कोई भी व्यक्ति खेती में निवेश करना नहीं चाहता था। इसी आंदोलन के दौरान उन्होंने ग्रामीण कृषक महिलाओं की भी स्थिति देखी और उनकी मेहनत को भी देखा।

तभी उनको अपनी उस समाज में बदलाव लाने की धारणा को हवा देने का मौका मिल गया। एक बार साल 1987 में वे अपने पति के साथ 2 टन प्याज की बिक्री के लिए मसवाड से कोलापुर गई। बिक्री के लिए प्याज की यह मात्रा उस भाड़े से भी कम थी, जो उन्हें इस दौरान देना था। यहीं से उनके मन में यह विचार आया कि 'क्यों न एक ऐसी क्रेडिट को-ओपरेटिव बैंक सोसायटी खड़ी की जाए, जो इन ग्रामीण किसानों की छोटी छोटी बचतों को इकट्ठा कर उन्हीं के लिए निवेशित की जाए। और जिससे उनकी रोजगारी की समस्या भी हल हो सके।

वर्ष 1991-1994 के दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि महिलाएं ज्यादा बेहतर मनी मैनेजमेंट कर सकती हैं। तभी उन्होंने महिलाओं के लिए कुछ ऐसा करने की ठानी, जो उन महिलाओं को अर्थिक स्थिरता प्रदान कर सके। तब उन्होंने एक महिला बैंक शुरू किया, जिसके लिए उन्होंने एकदम नए सिरे से कार्य शुरू किया। इस सोसायटी के लिए जो सदस्य चयनित किए जा रहे थे, वे वही ग्रामीण अनपढ़ महिलाएं थी, जिनके लिए यह बैंक खड़ा किया जाना था। इस बैंक के लिए लिखित प्रपोजल तैयार किया गया। नियम के मुताबिक बैंक शुरू करने के लिए 5 लाख रूपये की जरूरत थी। यह बहुत बड़ी राशि थी, लेकिन सदस्य काफी होने की एवज में सभी ने 25-25 रूपये के योगदान से आखिरकार कुल 6 लाख एकत्रित हो गए। जब सीजीआई और आरबीआई को इस बैंक के लाइसेंस के लिए आवेदन भेजा गया तो अधिकारियों ने यह कहते हुए आवेदन ठुकरा दिया कि उस बैंक को कैसे रजिस्टर किया जा सकता है, जिसके सदस्यों को पढऩा लिखना तक नहीं आता, तो वे कैसे वित्तीय मामलों को संभाल सकती हैं।

इसके बाद चेतना जी ने मन बनाया कि इन महिलाओं को पढ़ाया लिखा कर इस काबिल बनाया जाए कि वे इस सोसायटी का कार्यभार संभाल सकें। ऐसा करने के बाद चेतना जी फिर एक बार प्रपोजल लेकर कार्यालय पहुंची। इस बार प्रपोजल की मंजूरी के लिए कुछ ग्रामीण महिलाओं को साथ लेती गई। वहां फिर वही समस्या पैदा हुई तो उन महिलाओं ने कुछ आंकड़ों की गणना के लिए उन अधिकारियों को चुनौती दी और उनसे पहले हिसाब करके दिखा दिया और उन अधिकारियों के सामने पूरे आत्मविश्वास से कहा, 'साहब हमें मौका नहीं मिला पढऩे का, इसलिए हम अनपढ़ हैं, नहीं तो पढऩा तो हम भी चाहते थे। और आज जब मौका मिला है, तो हम पढ़-लिख भी सकते हैं और अपने कार्य भी भलीभांति कर सकते हैं।' उस समय अधिकारी पद पर आरबीआई के श्रीमान परमार और सीजीआई के दिनेश ओवरकर थे। महिलाओं की बात सुनकर प्रपोजल को अगस्त 1997 में स्वीकृति मिल गई। इस सोसायटी को नाम दिया गया मनदेशी ग्रुप। आज यह बैंक सवा लाख से भी ज्यादा सदस्यों के साथ काम कर रहा है और महाराष्ट के सात जिलों में अपनी पकड़ बना चुका है। महाराष्ट के अलावा मनदेशी ग्रुप कर्नाटक में भी पैर पसार चुका है और अब झारखंड और कश्मीर के लिए भी काम चल रहा है।

काम को बढ़ता देख चेतना जी ने साल 2006 में एक बिजनेस स्कूल भी शुरू किया, जिसके लिए पहले 15 महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया और अब यही महिलाऐं अन्य महिलाओं को उनके रोजगार आदि के लिए प्रशिक्षण देती हैं। यहां पेपर कप, मिल्क प्रोडक्शन, कंप्यूटर ट्रेनिंग, वेंडरिंग, टेलरिंग आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। मनदेशी नाम के पीछे क्या उद्देश्य है, यह पूछने पर चेतना जी कहती हैं, 'मन मसवाड की एक नदी का नाम है, जो हमेशा सूखी रहती है। मन का मराठी में मतलब है रेत और देशी का मतलब है स्थानीय।'

SMT. CHETNA GALA SINHA 
Recipient of the 13th IMC - Ladies’ Wing Jankidevi Bajaj Puraskar - 2005 for Rural Entrepreneurship

Chetna Gala Sinha is an Indian social entrepreneur. She is empowering women in drought prone areas of rural India by inculcating entrepreneurial skills and providing them access to land and other means of production.
Born in Mumbai, she earned her Masters degree in Commerce and Economics from Mumbai University in 1982.
Chetna Gala Sinha was a leader in the Jayprakash Narayan student activist movement at the end of the 1970s, which fought for the democratic and basic human rights of the rural and marginalized communities during the Indira Gandhi’s Emergency.
Ms. Chetna Sinha strongly believes that empowering rural women contributes to improving their own lives and well being of their families and the community. Following her belief, Ms. Chetna Sinha, formed the Mann Deshi Mahila Sahakari Bank Ltd. Mhaswad, in Satara district of Maharashtra. It is India’s first rural financial institution to receive a co-operative license from the Reserve Bank of India.
Smt. Sinha has been successful in introducing this new concept to develop a culture of micro-entrepreneurship among women in the inaccessible, drought-prone areas of Maharashtra. She has significantly contributed to bring in a revolution amongst rural women by providing them the tools necessary for achieving financial independence and self-sufficiency.
The bank was set up in 1997 and is run by women, for women. This undertaking, in addition to offering financial assistance, also invests in developing rural infrastructure and asset-building; floats projects to rejuvenate local traditional skills; offers training for skill upgradation and rebuilds women’s linkages with new markets.
With an objective to promote the right of women to own property, Mann Deshi Bank succeeded in convincing the Revenue Department of Maharashtra to include women’s names on stamp papers which are required in transactions of immovable properties, since 2004.
In addition to the bank, the Mann Deshi Mahila umbrella involves operations of two other organizations Mann Vikas Samajik Sanstha and Mann Deshi Mahila Bachat Gat Federation. The Sanstha provides students scholarships, vocational skills training and conducts health education camps. The Federation is a non-profit association aims at developing and empowering rural women entrepreneurs and currently caters to more than 300 self-help groups. These comprise of self employed women who are vegetable vendors, milk sellers and weavers.
Smt. Sinha, 47 and a mother of three sons, born in Mumbai, has earned her master’s degree in Commerce and Economics from Mumbai University in 1982. Her work and contribution has also gained recognition and acclaim internationally. Various organizations and financial institutes have extended their support and co-operation towards Smt. Sinha’s commendable projects and activities.

1 comment:

  1. Congratulations Chetna Sinha on receiving the Award. The IMC Ladies' Wing, under the presidentship of Smt. Kiran Bajaj, instituted an award in 1993, the IMC Ladies' Wing Jankidevi Bajaj Puraskar, to recognise women entrepreneurs who work for the progress of rural India. The award is named after Smt. Jankidevi Bajaj who strongly advocated the emancipation of women and envisioned them as agents of progress. Read more about the award and the Bajaj Group's contribution, on the Jamnalal Bajaj Foundation website.

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