Sunday, July 22, 2012

Mary Kom ……….....................…… मैरीकॉम



Mary Kom …………… मैरीकॉम 

मेरीकोम भारत की स्टार महिला मुक्केबाज हैं जिन्होंने लंदन ओलम्पिक में हिस्सा लेने की योग्यता हासिल कर ली है। महिला मुक्केबाजी को पहली बार ओलम्पिक में शामिल किया गया है। मेरीकोम ने शुक्रवार को यह योग्यता पाई। मेरीकोम को हालांकि यह योग्यता तोहफे में मिली क्योंकि उनकी उम्मीद मुक्केबाज निकोला एडम्स पर टिकी थी। निकोला ने रूस की येलेना सावेलयेवा को विश्व चैम्पियनशिप के सेमीफाइनल में हराकर मेरीकोम को यह तोहफा दिया। निकोला के हाथों क्वार्टर फाइनल में हारकर ही मेरीकोम छठी बार विश्व खिताब जीतने से चूक गई थीं।
मेरीकोम को एशिया क्षेत्र से उपलब्ध दो सीटों में से एक प्राप्त हुआ। चीन की रेन चानचान 51 किलोग्राम वर्ग में पहले ही क्वालीफाई कर चुकी हैं। उत्तर कोरिया की हेई किम भी इस वर्ग में ओलम्पिक सीट की दौड़ में शामिल थीं। मेरीकोम ने निकोला के मुकाबले के बाद कहा, "मैं इस मुकाबले को लेकर तनाव में नहीं थी। मैं सोच रही थी कि जब मेरे हाथ में कुछ है ही नहीं तो फिर चिंता क्या करना। मैं सिर्फ भगवान के बारे में सोच रही थी। भगवान ने मेरा संघर्ष देखा है और मैं जानती थी कि वह उसे बेकार नहीं जाने देंगे।"
मेरीकोम लन्दन ओलंपिक ( 27 July 2012- 12 August 2012 ) की मुक्केबाजी प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधितव करने वाली हैं | ईश्वर से हम सब यही प्रार्थना करेंगे कि वो ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करे और भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत कर अपना एवं देश का नाम रोशन करे |
Mary KomStar Indian Boxer (51 kilograms category ) . 5 times world champion Achievements 
NationalGold - 1st Women Nat. Boxing Championship, Chennai 6-12.2.2001The East Open Boxing Champ, Bengal 11-14.12.20012nd Sr World Women Boxing Championship, New Delhi 26-30.12.2001National Women Sort Meet, N. Delhi 26-30.12.200132nd National Games, Hyderabad 20023rd Sr World Women Boxing Champ, Aizawl 4-8.3.20034th Sr WWBC, Kokrajar, Assam 24-28.2.20045th Sr WWBC, Kerala 26-30.12.20046th Sr WWBC, Jamshedpur 29 Nov-3.12.200510th WNBC, Jamshedpur lost QF by 1-4 on 5.10.2009
AwardsArjuna Award (Boxing), 2004Padma Shree (Sports), 2006Contender for Rajiv Gandhi Khel Ratna Award, 2007People of the Year- Limca Book of Records, 2007CNN-IBN & Reliance Industries' Real Heroes Award 14.4. 2008 MonPepsi MTV Youth Icon 2008‘Magnificent Mary’, AIBA 2008Felicitation by Zomi Students’ Federation (ZSF) at New Lamka YPA Hall in 2008Rajiv Gandhi Khel Ratna award, 2009[24][25]International Boxing Association’s Ambassador for Women’s Boxing 2009 (TSE 30.7.2009 Thur)[26][27]Sportswoman of the year 2010, Sahara Sports Award[28]
मैरी कॉम 
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरीकॉम जिन्हें मैरी कॉम के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय महिला मुक्केबाजहैं। वे मणिपुर, भारत से हैं | वो पांच बार विश्व गैर-व्यावसायिक बॉक्सिंग में स्वर्ण जीत चुकी है । उनकी इस उपलब्धि से प्रभावित होकर एआइबीए ने उन्हें मॅग्नीफ़िसेन्ट मैरी (प्रतापी मैरी) का संबोधन दिया। मैंगते चंग्नेइजैंग मैरीकॉम 1 मार्च 1983 को मणिपुर के एक गरीब किसान परिवार में जन्मीं थी उस वक्त कोई नहीं सोच सकता था कि यह लड़की कभी बोक्सिंग का विश्व खिताब जीतेगी ।
मैरीकॉम की बचपन से ही खेल में रुचि थी.| जब वह लोकतक ईसाई मिशन स्कूल, Moirang में छठी कक्षा और सेंट जेवियर्स स्कूल, Moirang में सातवीं - आठवीं कक्षा में में थी वह एथलेटिक्स में गहरी रुचि लेती थी | मैरी ने तब सोचा कि वो एक दिन एक अच्छी खिलाड़ी बनेंगी | 
लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था | आठवीं कक्षा पूरी करने के बाद, मेरी इम्फाल आ गयी और Adimjati स्कूल में अपनी पढ़ाई शुरू कर डी | खेल में बहुत दिलचस्पी होने के कारण , वह हर जगह खेलो के बारे में पूछताछ करती रहती थी | महिला मुक्केबाजी भारत में उस वक्त शुरूआती दौर में थी इसलिए महिला मुक्केबाज भी अपेक्षाकृत बहुत ही कम थी | 
उनके मन में बॉक्सिंग का आकर्षण 1999 में उस समय उत्पन्न हुआ जब उन्होंने खुमान लम्पक स्पो‌र्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुछ लड़कियों को बॉक्सिंग रिंग में लड़कों के साथ बॉक्सिंग के दांव-पेंच आजमाते देखा। मैरी कॉम बताती है कि "मैं वह नजारा देख कर स्तब्ध थी। मुझे लगा कि जब वे लड़कियां बॉक्सिंग कर सकती है तो मैं क्यों नहीं?"साथी मणिपुरी बॉक्सर डिंगो सिंह की सफलता ने भी उन्हें बॉक्सिंग की ओर आकर्षित किया। मैरीकॉम ने यह सब देखकर अपनी पढाई छोड़ने का फैसला किया और उसके साथ ही दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति के साथ रिंग में प्रवेश करने का फैसला किया. बोक्सर डीन्ग्को सिंह के पांचवे राष्ट्रीय खेलों (मणिपुर) में मुक्केबाजी के प्रदर्शन ने उसे काफी प्रेरित किया | एक मुक्केबाज बनने का अपना सपना पूरा करने के लिए, वह भारतीय खेल प्राधिकरण में शामिल हो कर कोच और संरक्षक श्री ईबोम्चा सिंह से गहन प्रशिक्षण लिया |
मैरी कॉम ने सन् 2001 में प्रथम बार नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती। अब तक वह छह राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी है। बॉक्सिंग में देश का नाम रोशन करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2003 में उन्हे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया एवं वर्ष 2006 में उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जुलाई 29, 2009 को वे भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए (मुक्केबाज विजेंदर कुमार तथा पहलवान सुशील कुमार के साथ) चुनीं गयीं।.मेरी कोम जुझारू एवं जांबाज महिला हैं जिन्होंने विषम से विषम परिस्तिथियों में जिंदगी को जीना सीखा हैं | इसकी एक मिसाल अभी कुछ दिन पहले देखने को मिली जब मणिपुर में आर्थिक नाकेंबंदी चाल रही थी उस वक्त के बारे में विश्व महिला बॉक्सिंग चैम्पियन मेरी कोम का कहना है कि इस विषम परिस्थति में वह किसी तरह ओलम्पिक की तैयारियां कर रहीं और लकड़ियों का इस्तेमाल कर खाना बना रही हैं। दो बच्चों की मां कोम ने कहा कि लकड़ी जलाकर खाना बनाने में काफी समय लगता है और इस वजह से जीवन बहुत कठिन हो गया है। आर्थिक नाकेबंदी की वजह से गैस सिलेंडर बाजार में नहीं मिल रहा है। मैं लकड़ी जलाकर खाना बनाने को मजबूर हूं।
कोम कहती हैं कि इस तरह की परिस्थति में ओलम्पिक को लेकर उनकी तैयारियों पर असर पड़ रहा है। पांच बार की महिला बॉक्सिंग विश्व चैम्पियन रहीं कोम उन हजारों लोगों में से एक हैं, जो इस वर्तमान आर्थिक नाकेबंदी की वजह से प्रभावित हैं। इन लोगों में रोजमर्रा की चीजों की इतनी ऊंची कीमत देने की क्षमता नहीं है। 
मणिपुर सरकार ने उसे 2005 में पुलिस के उप निरीक्षक के पद दिया. वह 2008 में पुलिस निरीक्षक के पद पर पदोन्नत किया गया था और फिर 2010 में पुलिस उप अधीक्षक (डीएसपी) के पद पर पदोन्नत किया. उसे उसकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए राष्ट्रीय खेल गांव में एक घर देकर पुरुस्कृत किया|
खेल मेरीकोम के लिए सब कुछ नहीं हैं | अपने खाली समय में वह पारिवारिक एवं सामाजिक उत्सवों में भाग लेती हैं इसके साथ ही युवा लोगों को अपने सपनों का साकार करने के लिए प्रोत्साहित करती रहती हैं |
कोम non-profit ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट के द्वारा समर्थित है इसके अंतर्गत उन्होंने एम सी मैरी कोम मुक्केबाजी फाउंडेशन खोला है जिसमे वो समाज के बिचले तबके के युवाओ को मदद करती हैं |
मरियम ने श्री ओनलर कोम से दिल्ली में मुलाकात के बाद 12 मार्च 2005 शादी कर ली थी | आनलर उन के लिए एक गाइड है, एक दार्शनिक और एक मित्र की तरह है | 
मेरी की शुरुआत एक गाँव से हुयी और फिर आज उसकी प्रसिद्धि दुनिया के सब महाद्वीपों में हैं बेशक आज यह एक मात्र परियों की कहानी लगती हो | पर इसके पीछे मेरी का धैर्य , दृढ़ संकल्प और कभी हार न मानने वाला रवैय्या हैं | 
आज एक किसान की बेटी अपना अधिकांश मिशन पूरा करते हुए , एक शानदार उदाहरण के रूप में हमारे सामने हैं और इसके साथ ही आज वो लंदन 2012 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के द्वार पर खडी हैं | क्या ऐसा होगा ये तो भविष्य ही बताएगा पर हम सब की शुभकामनाये हमेशा उनके साथ रहेंगी 
Mary Kom
Mangte Chungneijang Mary Kom (M.C.Mary Kom) was born on 1st March 1983 and was brought up in a poor family. It is impossible to imagine that Mary Kom would one day rise and become a World Boxing Champion.
Her family background speaks a lot of how Mary overcame hardship and inconveniences and created a name for herself in the arena of world boxing. Her parents Mr. Mangte Tonpa Kom and Mrs Mangte Akham Kom earned their livelihood by working and being engaged in others jhum fields. Being the eldest, Mary helped her parents work in the fields, cutting woods, making charcoal and fishing. On the other hand, she spent a good time looking after her two younger sisters and a brother.
Mary Kom was interested in sports since her childhood. She took a keen interest in Athletics when she was in class VI in Loktak Christian Mission School, Moirang and class VII- VIII in St.Xavier School, Moirang. Mary thought that she would become a good athlete one day and carve a name for herself in the discipline.

But fate decided otherwise. After completing her class VIII, Mary came to Imphal and continued her studies at Adimjati School. Being so fond of sports, she enquired around and found out about women boxing.
It was a new idea since women boxers were relatively unknown those days. The rise of Dingko Singh and the demonstration of women boxers at the 5th National Games (Manipur) inspired her.
Mary Kom decided to hang up her books and enter into the ring with determination and strong will. To pursue her dream of becoming a world class pugilist, she joined Sports Authority of India, Khuman Lampak and underwent an intensive training from coach and mentor, Shri. Ibomcha Singh.
Seeing Mary’s potential and determination, Manipur State coaches Shri. Narjit Singh and Shri. Kishan Singh decided to take her under their wings. Mary was taught finer details and absorbed it all. The encouragement and support by Shri. Khoibi Salam, Secretary of MABA and Vice President of IABA, and Manipur Boxing Association was also a turning point for Mary Kom.
Manipur Government gave her the post of Sub-inspector of police in 2005. She was promoted to inspector of police in 2008 and again promoted to the post of Deputy Superintendent of Police (DSP) in 2010. She was also given a house at National Games Village without any cost for her outstanding achievements.
Sports are not everything for Mary. In her spare time, she takes pain to attend functions and mingle with the people.The ever-smiling and ready-to-help Mary Kom always encourages young people to chase their dreams and have faith in God. 
Kom is supported by the nonprofit Olympic Gold Quest and has opened the M.C. Mary Kom Boxing Foundation for underprivileged youth.
Mary married K.Onler Kom of Samulamlan Block whom she met in Delhi. Onler proved to be a guide, a friend and a philosopher for Mary and they decided to vow each other for lifetime at Manipur Baptist Convention Church on 12th March 2005.
Mary's humble beginning from Kangathei and her fame through continents of the world is a mere fairy tale. However, it was Mary’s grit determination and Never-Say-Die attitude with which she was able to earn laurels far away from her village. Mary Kom's belief in God and herself was what made all the difference.
Today, the farmer’s daughter stands as a shining example of “Mission (almost) Accomplished”. Her most awaited Gold-medal will be at the London 2012 Olympics.


Monday, June 11, 2012

Dr Jagmati Sangwan...........डॉ जगमति सांगवान






Dr Jagmati Sangwan,

Her Milestones: 
1. The scholarship to the Sports College in Hissar. It gave me a chance to study further and play. 
2. Standing up against the khap in 2001 in the Sonia-Rampal case where they had married within the same gotra. 
3. Finally seeing the murderers punished in the Manoj-Babli murder case, a first of its kind judgement.

डॉ जगमति सांगवान

रोहतक पढ़ाई के दौरान ही जगमति सांगवान ने महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करने की ठान ली थी। दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, घरेलू हिंसा, यौन शोषण व अन्य कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाना उसका मिशन बन गया है। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमति सांगवान पिछले 20 सालों से महिलाओं की स्वतंत्रता व उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं। खाप पंचायतों के तुगलकी फरमानों का विरोध करना हो या यौन शोषण के विरुद्ध आवाज उठाना या फिर घरेलू हिंसा व दहेज उत्पीडि़त महिला को न्याय दिलाना हो, वह मोर्चा लेने के लिए हर दम तैयार रहती हैं। प्रदेश की करीब 52 हजार महिलाएं समिति से जुड़ी हैं। एसोसिएट प्रोफेसर जगमति सांगवान अब तक भिवानी, रोहतक, जींद, हिसार, फतेहाबाद, गुड़गांव सिरसा, झज्जर, पानीपत, रेवाड़ी व अन्य जिलों में सैकड़ों जागरूकता अभियान चला चुकी हैं। गांवों में घर-घर जाकर उसने महिलाओं को घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न, यौन शोषण व अन्य समस्याओं के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। वर्ष 2006 में समिति की ओर से विभिन्न जिलों में समाज सुधार जत्थे निकाल 15 दिवसीय अभियान चलाया गया। इसके अलावा विभिन्न गांवों में एक या दो बेटी वाले 300 दम्पतियों को सम्मानित कर समाज के अन्य लोगों को बेटी बचाओ के लिए प्रेरित किया। जगमति सांगवान शिक्षण कार्य करने के बाद परामर्श केंद्र पर आने वाली महिलाओं की समस्याएं सुनती हैं। जगमति ने 1980 में दक्षिण कोरिया के सिओल में हुई एशियन वालीबॉल चैंपियनशिप में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए देश को कांस्य पदक दिलाया। बढि़या प्रदर्शन की बदौलत 1981 में मैक्सिको में वर्ल्ड वालीबॉल चैंपियनशिप व 1982 में एशियाई खेलों में हिस्सा लिया। 1984 में खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाली जगमति सांगवान को प्रदेश सरकार की ओर से भीम अवार्ड सबसे पहले हासिल करने का श्रेय प्राप्त है। जगमति सांगवान मदवि के महिला अध्ययन केंद्र की संस्थापक निदेशक भी रही हैं। फिलहाल वह मदवि के शारीरिक शिक्षा विभाग में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर कार्यरत हैं। साथ ही वह दहेज उन्मूलन कमेटी व मीडिया मॉनिटरिंग कमेटी की सदस्य के रूप में काम कर रही है। वह प्रदेश सरकार के कन्या भू्रणहत्या रोको अभियान के सुपरवाइजरी बोर्ड की सदस्य हैं।

खाप पंचायत एक पुरानी संस्था है । छठी शताब्दी में महाराजा हर्षवर्धन ने सर्वखाप पंचायत बुलाई थी । सही मायने में इसका विस्तार मध्यकालीन युग में हुआ था, जब कानून व्यवस्था की स्थिति अच्छी नहीं थी । इसका मुख्य कार्य अपने सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करना तथा उनके आपसी झगड़ों का निपटारा करना था। उस काल में और 1857 के अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खापों की प्रशंसनीय भूमिका रही है। खाप के सब सदस्यों में खून का रिश्ता माना जाता है। इसलिये विवाह पर कई प्रकार के प्रतिबंध है -जैसा कि सगोत्र विवाह, गांव में विवाह तथा पड़ोस के गांव में वैवाहिक संबंधों पर प्रतिबंध है। फिर कुछ गोत्रों में भाईचारा माना जाता है और उनमें वैवाहिक संबंध पर रोक है।

हरियाणा के कुछ जिले, दिल्ली देहात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली से सटा हुआ राजस्थान का क्षेत्र खाप क्षेत्र में आता है। यह अधिकांश रूप से गोत्र आधारित व्यवस्था है। किसी गंभीर समस्या पर विचार करने के लिये सब या कुछेक खापों के सम्मेलन को सर्वखाप पंचायत की संज्ञा दी जाती है।
पिछले कई सालों से हरियाणा की खाप पंचायत अपने फरमानों की वजह से चर्चा में रही है। वैवाहिक जोड़ों को भाई-बहन बनाने का फरमान, परिवारों का सामाजिक बहिष्कार या उनके गांव से निष्कासन, ऑनर किलिंग-सम्मान के लिये मृत्यु दण्ड इत्यादि मामलों में हरियाणा की खापें मीडिया में छाई रही हैं।

अतीत में खापें न्याय के लिये लड़ती रही हैं। जब अलाउद्दीन खिलजी ने गंगा स्नान पर जजिया लगाया तो सर्वखाप पंचायत ने गढ़ गंगा पर इसके विरुद्घ मोर्चा लगाया था और तत्कालीन सरकार को यह कर वापस लेना पड़ा। 1857 में खाप के सूरमें अंग्रजों के खिलाफ लड़े और शहीद हुए। अब क्या हो गया कि हरियाणा की खापों की नाक के नीचे जुल्म हो रहे हैं और उन्हें सांप सूंघ गया है, खाप के चौधरी चुप्पी साधे रहते हैं।

हकीकत यह है कि वर्तमान खाप संस्था पर इस प्रकार के लोग काबिज हो गये हैं जो अपनी निजी रंजिश निकालने और ग्रामीण समाज पर अपना गलबा कायम रखने के लिये ऊलजलूल फैसले लेते रहते हैं।

आजकल हरियाणा की खापों की मुख्य मांग यह है कि विवाह अधिनियम 1955 में संशोधन करके सगोत्र विवाह, उसी गांव में विवाह और पड़ोस में विवाह पर प्रतिबंध लगाया जाए। स्वयं हरियाणा में हिसार से आगे अनेक गांव हैं जहां जाटों और बिश्नोइयों के गांवों में उसी गांव में विवाह की प्रथा है। हरियाणा के प्रसिद्घ गांव चौटाला में 200 से अधिक शादियां उसी गांव में हुई हैं। यह गांव अपवाद नहीं है। एक बहुत बड़ा क्षेत्र है जहां खाप की व्यवस्था नहीं है। हरियाणा में हिसार, फतेहबाद, सिरसा, पंजाब के अबोहर-फाजिल्का का इलाका, राजस्थान में गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर व बाड़मेर जिले-एक बहुत विशाल क्षेत्र है जहाँ खाप संस्था नहीं है और वहां जाटों के गांव में उसी गांव में विवाह की प्रथा का प्रचलन है। अगर कानून में बदलाव किया जाता है तो इसका यह अभिप्राय हुआ कि देशवाली जाटों के लिये एक कानून और बागडिय़ों और बिश्नोइयों के लिये दूसरा कानून। कौन देशवाली है और कौन बागड़ी, इसका फैसला कौन करेगा? हिसार व फतेहबाद जिलों में ऐसे कई गांव हैं जहां दोनों देशवाली व बागड़ी जाट आबाद हैं।

पड़ोस और भाईचारे वाले गोत्रों के विवाह पर रोक की मांग तो बिल्कुल बेतुकी है। आज के युग में जबकि सारी दुनिया एक ग्लोबल विलेज मानी जाती है, पड़ोस की बात करना बिल्कुल फिजूल है। गांव में जितने गोत्र हैं, उस गोत्र की लड़की बाहर से भी बहु बनकर उस गांव में नहीं आ सकती। इस परम्परा की वर्तमान युग में कोई प्रासंगिकता नहीं है। खाप क्षेत्र में कई ऐसे गांव है जहां एक दर्जन या इससे भी अधिक गोत्र वाले जाट आबाद हैं। समचाना गांव में जाटों के 15 गोत्र हैं। विवाह के लिये यह सब गोत्र टाले जाएं और पड़ोस में भी रिश्ता नहीं हो सकता। फिर जाटों के बहुत से गोत्र हैं जिनमें भाईचारा माना जाता है, जैसा कि दलाल, मान, देशवाल, सुहाग इत्यादि और उनमें भी रिश्ता नहीं हो सकता। अगर इन सब वर्जनाओं को माना जाए जो जाटों को रिश्तों के लिये विदेश जाना पड़ेगा।

जहां तक सगोत्र विवाह का सवाल है, जाटों में ऐसा विवाह कहीं भी नहीं होता। सारे हरियाणा में सगोत्र विवाह की कैथल जिले के किरोड़ा गांव के मनोज व बबली की एक घटना है। कोई दूसरी मिसाल हरियाणा में नहीं मिलती। किरोड़ा की घटना एक अपवाद है और कानून में जो भी परिवर्तन हो, ऐसे अपवाद होते रहेंगे। जोड़े भागते रहेंगे। जरूरत पडऩे पर धर्म परिवर्तन करके विवाह कर लेंगे-इस्लाम व बौद्घ धर्म में गोत नात का लफड़ा नहीं है। फिर उच्चतम न्यायालय का फैसला है कि वयस्क लड़का व लड़की विवाह के बिना भी साथ रह सकते हैं। अगर ऐसे मामलों में खाप या जातीय पंचायत हिंसा पर उतरती है तो कानून अपना कार्य करेगा जैसा कि मनोज व बबली के हत्यारों के साथ हुआ।

जाहिर है कि सगोत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाने से समस्या का कोई हल नहीं होगा। समस्याएं कुछ और हैं जिनसे खाप के मुखियों का दूर का भी वास्ता नहीं लगता। ग्रामीण समाज तेजी से बदल रहा है। इस बदलाव के साथ परम्पराओं में भी तबदीली आनी चाहिए। समय की मांग के अनुसार अगर परम्पराओं में परिवर्तन नहीं होता तो परम्पराएं सड़ांध मारने लग जाती हैं और समाज पर बोझ बन जाती हैं। परम्पराओं और आधुनिकता में सही तालमेल बिठाया जाना चाहिए। जिसके लिये खाप के मध्यकालीन युग की सोच के लोग तैयार नहीं हैं।

प्रोफेसर जगमति सांगवान के आज ग्रामीण समाज में गहरा संकट है। भ्रूण हत्या एक गहरी समस्या है। हरियाणा में लिंग अनुपात ( 861=1000) भारत में ही नहीं, सारी दुनिया में सबसे कम है। हर बड़े गांव में सैंकड़ों नौजवानों की शादियां नहीं हो रहीं। रिश्तों पर तरह-तरह की बंदिशें इस समस्या को और गहन बना रही हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार महिलाओं की पूर्ति के लिये दूरदराज प्रदेशों से साल में लगभग 10,000 लड़कियां हरियाणा में लाकर बेची जाती हैं। उनकी जात व गोत्र कोई नहीं पूछता। एक अच्छी भैंस खरीदने के लिये 60 से 70 हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। एक अच्छी लड़की 10 से 15 हजार में मिल जाती है। कई मामलों में मर्द अपनी हवस पूरी होने पर ऐसी पत्नी को आगे बेच देता है। समाज का अमानवीयकरण हो रहा है।



Dr Jagmati Sangwan

The Haryana State All India Democratic Women's Association (AIDWA) president,who was part of the volleyball team that played in the Asian Games, belongs to a farmer's family from Butana village in Sonepat district. She is also the state president of Janwadi Mahila Samiti (JMS).
Dr Jagmati Sangwan, former international volleyball player and recipient of the Bheema award, says: “Indian sports women have been facing sexual harassment over the last three decades at least.” Sangwan, who is Associate Professor in the Department of Physical Education, Maharshi Dayanand University, Rohtak, recalls the years when she was an active player from 1974 to 1986. She would often notice coaches passing “needlessly vulgar remarks” at women players. “They were lecherous, and their gestures were obscene. But women players of that period suffered it all in silence,” she reveals.
In a world completely different where unmarried girls are not even allowed a surname, let alone a career, 50-year-old Jagmati Sangwan is championing the cause of women's rights. She has singlehandedly managed to upset and revoke every law laid down by the self-proclaimed authorities in rural Haryana, the khaps. A former international volleyball player and now social activist and state president of the All India Democratic Women's Association (AIDWA), Sangwan is the daughter of a small farmer in Butena village in Sonepat, Haryana, and the youngest of five brothers and three sisters. She grew up watching the boys in the village play while the women and girls did household chores as she and her friends in school decided to form a rookie volleyball team at the age of 13. 

The team performed well and got selected for the Asian Volleyball Championship to Seoul bagging the bronze though two of her teammates were not allowed to participate owing to the pressure from their families. "Those two girls were better players than I was and the gold would have been a reality had they been allowed to play," she remembers. Sangwan did not forget this and went on to do a PhD. on the status of sportswomen in Haryana citing her friends as case studies. 

The mother of a 25-year-old journalist daughter, Akhila, Sangwan is now Director, Women's Study Centre, in the Maharshi Dayanand University in Rohtak and ever since her sports college days at Hissar, has been involved in women's issues with AIDWA, trying to change conservative mindsets. It began in 1988 when a 15-year-old girl was raped for revenge in the Jind area as her brother had eloped with a girl from the same village. Sangwan and the others made sure an FIR was registered and the perpetrators were brought to book. 

This was followed by years of protests, interventions and finally in 2002, Sangwan managed to break into a khapmahapanchayat, the first woman to do so. She is now pushing for a law against community violence that she says is not even seen as a crime. "The ancient khaps never intervened in matters of marriage while the khaps of today focus only on that. It is nothing but a way to keep patriarchy and the caste system intact."
Marrying out of choice,opting for a girl child and retaining her gotra after marriage all these were not easy for this Jat girl who married Student Federation of India leader InderjitSingh,now state secretary of CPI(M).I retained my gotra because I was known by my surname when I used to play volleyball, she says. 



Dr Jagmati Sangwan

The Haryana State All India Democratic Women's Association (AIDWA) president,who was part of the volleyball team that played in the Asian Games, belongs to a farmer's family from Butana village in Sonepat district. She is also the state president of Janwadi Mahila Samiti (JMS).

Dr Jagmati Sangwan, former international volleyball player and recipient of the Bheema award, says: “Indian sports women have been facing sexual harassment over the last three decades at least.” Sangwan, who is Associate Professor in the Department of Physical Education, Maharshi Dayanand University, Rohtak, recalls the years when she was an active player from 1974 to 1986. She would often notice coaches passing “needlessly vulgar remarks” at women players. “They were lecherous, and their gestures were obscene. But women players of that period suffered it all in silence,” she reveals.

In a world completely different where unmarried girls are not even allowed a surname, let alone a career, 50-year-old Jagmati Sangwan is championing the cause of women's rights. She has singlehandedly managed to upset and revoke every law laid down by the self-proclaimed authorities in rural Haryana, the khaps. A former international volleyball player and now social activist and state president of the All India Democratic Women's Association (AIDWA), Sangwan is the daughter of a small farmer in Butena village in Sonepat, Haryana, and the youngest of five brothers and three sisters. She grew up watching the boys in the village play while the women and girls did household chores as she and her friends in school decided to form a rookie volleyball team at the age of 13. 

The team performed well and got selected for the Asian Volleyball Championship to Seoul bagging the bronze though two of her teammates were not allowed to participate owing to the pressure from their families. "Those two girls were better players than I was and the gold would have been a reality had they been allowed to play," she remembers. Sangwan did not forget this and went on to do a PhD. on the status of sportswomen in Haryana citing her friends as case studies. 

The mother of a 25-year-old journalist daughter, Akhila, Sangwan is now Director, Women's Study Centre, in the Maharshi Dayanand University in Rohtak and ever since her sports college days at Hissar, has been involved in women's issues with AIDWA, trying to change conservative mindsets. It began in 1988 when a 15-year-old girl was raped for revenge in the Jind area as her brother had eloped with a girl from the same village. Sangwan and the others made sure an FIR was registered and the perpetrators were brought to book. 

This was followed by years of protests, interventions and finally in 2002, Sangwan managed to break into a khapmahapanchayat, the first woman to do so. She is now pushing for a law against community violence that she says is not even seen as a crime. "The ancient khaps never intervened in matters of marriage while the khaps of today focus only on that. It is nothing but a way to keep patriarchy and the caste system intact."

Marrying out of choice,opting for a girl child and retaining her gotra after marriage all these were not easy for this Jat girl who married Student Federation of India leader InderjitSingh,now state secretary of CPI(M).I retained my gotra because I was known by my surname when I used to play volleyball, she says. 

Saturday, May 12, 2012

Anjali Gopalan.................अंजलि गोपालन


Anjali Gopalan.................अंजलि गोपालन 



Anjali Gopalan
We all heard of West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee making it to the Time magazine's list of the 100 most influential people in the world. Another Indian to make it to the coveted list is advocate and gender rights activist Anjali Gopalan.

अंजलि गोपालन 
हम सबने सुना हैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को दुनिया के 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में जगह दी गई है। टाइम मैगजीन की ताजा सूची में जिस दूसरे भारतीय का नाम हैं वो हैं अंजलि गोपालन | वे भारत में एचआईवी या एड्स के मरीजों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। 

भारत में एचआईवी या एड्स के मरीजों को संभवत: अलग-थलग रखा जाता है, लेकिन ब्रुकलिन से नई दिल्ली आईं अंजलि का जीवन ऎसे ही लोगों को समर्पित है। पेशे से वकील अंजलि समलैंगिकों के अधिकारों और यौनउत्पीडित लोगों के लिए भी आवाज उठाती रही हैं।

अंजलि गोपालन एक वो महिला है जिसने पत्रकारिता में नाम कमाना चाहा | अपनी कलम की ताकत से समाज को एक नयी दिशा देना चाहती थी पर अचानक ही एच.ई.वी से प्रभावित लोगों के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया | यहाँ तक की माँ नहीं बनने का फैसला कर लिया क्यूंकि जीवन का लक्ष्य था पीड़ितों की मदद करना | आज वह जिस मोकाम पर है यहाँ तक पहोचने के लिए उन्होंने मानसिक व सामाजिक तौर पर काफी संघर्ष किया है | आज से १७ साल पहेले जब अंजलि अमेरिका से लोट कर भारत में अपने काम की शुरुवात की तो ऐसा लगा कि वह जैसे पत्थर पर सर घिस रही है | भारत की जो संस्कृति है और जीवन जीने का जो सामाजिक ढाचा है उसमें खुलापन कम और नैतिक विश्वास का आधार ज्यादा है | ऐसे में अंजलि ने एच.ई.वी व एड्स पीधितों के लिए काम करना शुरू किया तोह उनके मन में ख्याल आया की क्यूँ न लोग एच.ई.वी के संपर्क में न आये | इसकी शुरुवात उन्होंने गृहिनियों के साथ की | अंजलि कहेती है प्रशनों का उत्तर देना और सामने वाले को संतुष्ट बहुत ही मुश्किल काम था लेकिन अंजलि ने भी कमर कस ली थी की उन्हें सफलता पानी थी और इसका नतीजा है नाज फाउनडेशन इस फाउनडेशन का तालुक सिर्फ एच ई वी + स्त्री और पुरुषों से ही नहीं बल्कि बच्चें व हर उस व्यक्ति के साथ है जिसको हमारी ज़रुरत है | 

राजनीति शास्त्र में एम् ए के साथ आई आई एम् सी से पत्रिकारिता में इनटरनेशनल डेवेलपमेट में पी जी डिपलोमा करने बाद अंजलि ने पी.टी. आई व दूरदर्शन में काम किया पर अपने कम से उन्हें संतुष्टि नहीं हुई |इसलिए पीटीआई और दूरदर्शन में काम करने के बाद किस्मत उन्हें एक ऐसी मुहिम में अमेरिका ले गई, जिसने उनके सोचने और काम करने का तरीका ही बदल दिया। पहले अमेरिका और फिर भारत में कुल मिलाकर अठारह साल की मुहिम में अंजलि गोपालन ने समलैंगिकों और एचआईवी-एड्स पीड़ितों के हक में जैसी लड़ाई लड़ी, वह अपनी मिसाल आप है।

चर्चित अमेरिकी पत्रिका टाइम ने दुनिया की सौ महत्वपूर्ण शख्सियतों में शुमार करते हुए उनकी प्रशस्ति में लिखा है- 'नाज फाउंडेशन के जरिये गोपालन ने भारत में समलैंगिकों और यौन अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए किसी और की तुलना में ज्यादा काम किया है।' जिस देश में एड्स से पीड़ित होना सामाजिक बहिष्कार की वजह बनता है और जहां समलैंगिकों के हक में आवाज उठाने को भी अशालीन माना जाता है, वहां इस तरह की सामाजिक मुहिम चलाना, वह भी एक स्त्री द्वारा, आसान काम नहीं था।

उन्होंने 1994 में दिल्ली में देश की पहली एचआईवी/एड्स क्लिनिक की स्थापना की थी। उसके सात साल बाद एचआईवी/एड्स से पीड़ित अनाथ बच्चों के लिए उन्होंने देश का पहला केयर होम स्थापित किया, जिसमें अभी करीब 30 बच्चे रहते हैं। इनमें से ज्यादातर ऐसे एड्सपीड़ित बच्चे हैं, जिन्हें उनके परिवार वाले छोड़ गए थे। करीब तीन साल पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को असांविधानिक बताते हुए समलैंगिकों के हक में जो फैसला दिया था, उसके पीछे अंजलि गोपालन और उनकी संस्था का ही उद्यम था।

शुरू में न्यायालय ने उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, लेकिन उनकी अनथक कोशिशों को देख अदालत ने ऐतिहासिक पहल की। चाहे वह महिलाओं को यौन रोगों से दूर रहने की सलाह देनी हो, लोगों को अपने समलैंगिक बच्चों को स्वीकारने का सामाजिक दबाव बनाना हो या एड्स पीड़ित बच्चों के सिर पर ममता भरा हाथ रखते हुए उन्हें जीवन की मुख्यधारा में शामिल करने का काम हो, नाज फाउंडेशन ने इन तमाम क्षेत्रों में विलक्षण काम किया है। एड्स पीड़ितों के अलावा अंजलि आवारा कुत्तों को भी शरण देती हैं। उनकी इन्हीं उपलब्धियों को देखकर केंद्र सरकार ने 2007 में उन्हें सम्मानित किया था।

नाज के आश्रम में इस वक्त ३० बच्चे है | कुछ अनाथ तो कुछ एच.ई.वी से प्रभावित है | इन बच्चो को खाना , पढाई और दूसरी चीज़ें बिलकुल मुफ्त उपलब्ध कराइ जाती है | अंजलि हर रोज़ इन बच्चो के साथ और यहाँ इलाज के लिये आने वाले स्त्री, पुरुष के साथ समय गुज़रती है | अंजलि का कहना है कि यही उसका परिवार है और उसकी हर ज़रुरत को पूरा करना उसका लक्ष्य है और उनके इस फैसले में उनके पति व परिवार वालो ने पूरा साथ दिया | नाज को चलने के लिये पहेले उनके पिता ने उनकी सहायता की और आज देश ही नहीं बल्कि विदेशो से भी आर्थिक सहायता मिल रही है | अंजलि एड्स पीढित को मुफ्त शिक्षा देने के साथ साथ एड्स जागरूकता को लेकर जगह जगह कैंप लगाती है |


Anjali Gopalan

A pioneer in the field of HIV prevention and care in India, Anjali Gopalan has stepped in to fill the deepest gap that exists in preventive and curative work in India today, by designing a model for an integrated system in children’s care facilities which includes HIV+ children.

With a Masters in International Development and another in Journalism, Anjali worked for many years with community-based organizations in New York City; providing direct services for HIV/AIDS and substance abuse issues. Circumstances led her to live and care for a friend with HIV, giving her first-hand knowledge and insight into the issues affecting HIV+ people. Returning to India in the early 1990s Anjali saw a tremendous gap in AIDS prevention and care services. Drawing upon her work with community groups in the U.S., Anjali founded the Naz Foundation Trust.
Working at the grass-roots level, Anjali understands that AIDS has reached epidemic proportions in India. Yet funding, government and media attention goes to states with the highest prevalence, and to groups that are deemed high-risk, such as sex workers and truck drivers. “The situation is skewed,” explains Anjali, “The messages coming from the media and the government is that the general population is not at risk.” Anjali’s role has been to raise money and awareness for these populations left out of national AIDS policy. For example, creating information that addresses the needs of women has been a major focus of her work at the Naz Foundation; the board comprises health economists, doctors, businessmen, and lawyers. 
Her work with children began quite by accident. Six years ago a child with HIV was abandoned at the Foundation’s office, and they couldn’t find an institution or hospital to take him. Anjali was forced to look after the child, which enabled her learn how dire the situation was for HIV+ children. This experience resulted in the Center, which is today home to thirty children. The actor Richard Gere funded the organization for three years, until she received a large endowment from her deceased brother to create a home for the children. 
Currently, Anjali spends a lot of time fundraising, advocating for systemic change, and in trainings; the daily logistics of running the care home has been given to her colleagues. Apart from being the Founder and CEO of Naz Foundation and Naz Care Home, she is on the board and advisory panels of several national and international organizations including International AIDS Vaccine Initiative, the NGO Core Group of the National Coalition for Health Initiatives, and the Resource Centre for Legislators.

Anjali currently lives and works in Delhi.Anjali`s Naz Foundation, a citizen organization (CO) it offers a range of prevention, support, and care programs that meet the needs of underserved populations around sexual identity and related issues, especially for women and MSM (men having sex with men) groups. Anjali is widening the scope of HIV prevention and care services by demonstrating how HIV+ children can be mainstreamed in existing home child-care and facilities. This is a necessity in a resource impoverished country like India, and will be beneficial to both the government and society. Anjali is building nationwide awareness around care of orphaned and vulnerable HIV+ children. Initially, she has prepared a training manual and provides training programs to build the capacity and skills of state and CO residential institutions providing care to children with AIDS—reducing stigma and discrimination. The project seeks to provide more opportunities for the care and support of HIV+ children in their residences. Anjali’s program monitors and is able to detect infections and effective treatment; admission of abandoned children who are denied adoption due to their HIV+ status, with special focus on the girl child who is doubly discriminated against by families who lay greater premium on the boy child; maintain confidentiality regarding their status; ensure their right to education and adequate healthcare; lobby for laws to protect children with the disease; sensitize officials, doctors, teachers, and care-givers at all levels; and last, but not the least, cater to the affected children’s unique psychosocial needs. She has also created a home-based care program to train families in care-giving. Anjali believes a child should only be placed in institutional care if orphaned, and she will not admit children with extended families. The home-based care program—which currently supports 350 families—is designed to ultimately empower communities to respond as well as possible to the epidemic.

Rani Gaidinliu......................रानी गाइदिनल्यू



Rani Gaidinliu......................रानी गाइदिनल्यू 


Rani Gaidinliu
The True Freedom Fighter
रानी गाइदिनल्यू 

रानी गाइदिनल्यू (जन्म- 26 जनवरी, 1915 ई.) ने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए नागालैण्ड में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया था।झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के समान ही वीरतापूर्ण कार्य करने के लिए इन्हें 'नागालैण्ड की रानी लक्ष्मीबाई' कहा जाता है। जब रानी गाइदिनल्यू को अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण अंग्रेज़ों ने गिरफ्तार कर लिया, तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कई वर्षों की सज़ा काट चुकी रानी को रिहाई दिलाने के प्रयास किए। किंतु अंग्रेज़ों ने उनकी इस बात को नहीं माना, क्योंकि वे रानी से बहुत भयभीत थे और उन्हें अपने लिए ख़तरनाक मानते थे।
जन्म तथा स्वभाव
'नागालैंड की रानी लक्ष्मीबाई' कही जाने वाली रानी गाइदिनल्यू का जन्म 26 जनवरी, 1915 ई. को मणिपुर राज्य के पश्चिमी ज़िले में हुआ था। वह बचपन से ही बड़े स्वतंत्र और स्वाभिमानी स्वभाव की थीं। 13 वर्ष की उम्र में वह नागा नेता जादोनाग के सम्पर्क में आईं। जादोनाग मणिपुर से अंग्रेज़ों को निकाल बाहर करने के प्रयत्न में लगे हुए थे। वे अपने आन्दोलन को क्रियात्मक रूप दे पाते, उससे पहले ही गिरफ्तार करके अंग्रेज़ों ने उन्हें 29 अगस्त,1931 को फांसी पर लटका दिया।
क्रांतिकारी जीवन
अब स्वतंत्रता के लिए चल रहे आन्दोलन का नेतृत्व बालिका गाइदिनल्यू के हाथों में आ गया। उसने गांधी जी के आन्दोलन के बारे में सुनकर सरकार को किसी प्रकार का कर न देने की घोषणा की। उसने नागाओं के कबीलों में एकता स्थापित करके अंग्रेज़ों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बनाने के लिए क़दम उठाये। उसके तेजस्वी व्यक्तित्व और निर्भयता को देखकर जन-जातीय लोग उसे सर्वशक्तिशाली देवी मानने लगे थे। नेता जादोनाग को फांसी देने से लोगों में असंतोष व्याप्त था, गाइदिनल्यू ने उसे सही दिशा की ओर की मोड़ा। सोलह वर्ष की इस बालिका के साथ केवल चार हज़ार सशस्त्र नागा सिपाही थे। इन्हीं को लेकर भूमिगत गाइदिनल्यू ने अंग्रेज़ों की फ़ौज का सामना किया। वह गुरिल्ला युद्ध और शस्त्र संचालन में अत्यन्त निपुण थी। अंग्रेज़ उसे बड़ी खूंखार नेता मानते थे। दूसरी ओर जनता का हर वर्ग उसे अपना उद्धारक समझता था।
गिरफ़्तारी
इस आन्दोलन को दबाने के लिए अंग्रेज़ों ने वहाँ के कई गांव जलाकर राख कर दिए। पर इससे लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। सशस्त्र नागाओं ने एक दिन खुले आम 'असम राइफल्स' की सरकारी चौकी पर हमला कर दिया। स्थान बदलते, अंग्रेज़ों की सेना पर छापामार प्रहार करते हुए गाइदिनल्यू ने एक इतना बड़ा क़िला बनाने का निश्चय किया, जिसमें उसके चार हज़ार नागा साथी रह सकें। इस पर काम चल ही रहा था कि 17 अप्रैल, 1932 को अंग्रेज़ों की सेना ने अचानक आक्रमण कर दिया। गाइदिनल्यू गिरफ्तार कर ली गईं। उस पर मुकदमा चला और कारावास की सज़ा हुई। उसने चौदह वर्ष अंग्रेज़ों की जेल में बिताए।
अंग्रेज़ों का भय
1937 में पंडित जवाहरलाल नेहरू को असम जाने पर गाइदिनल्यू की वीरता का पता चला तो उन्होंने उसे 'नागाओं की रानी' की संज्ञा दी। नेहरू जी ने उसकी रिहाई के लिए बहुत प्रयास किया, लेकिन मणिपुर के एक देशी रियासत होने के कारण इस कार्य में सफलता नहीं मिली। अंग्रेज़ अब भी उसे ख़तरनाक मानते थे और उसकी रिहाई से भयभीत थे।
रिहाई तथा सम्मान
1947 में देश के स्वतंत्र होने पर ही वह जेल से बाहर आईं। नागा कबीलों की आपसी स्पर्धा के कारण रानी को अपने सहयोगियों के साथ 1960 में भूमिगत हो जाना पड़ा था। स्वतंत्रता संग्राम में साहसपूर्ण योगदान के लिए प्रधानमंत्री की ओर से ताम्रपत्र देकर और राष्ट्रपति की ओर से 'पद्मभूषण' की मानद उपाधि देकर उन्हें सम्मानित किया गया। 


Rani Gaidinliu - The True Freedom Fighter
Rani Gaidinliu (26 January 1915 - 17 February 1993) - was the first female freedom fighter from Manipur, India. 'Free India' was a dream of Rani Gaidinliu under the British rule. She was honoured as a 'freedom fighter' and was also awarded a 'Padma Bhushan'. Late Prime Minister of India, Jawaharlala Nehru, described her as the 'Daughter of the hills' or Queen of her people. She was also known as 'Rani Ma'.

Rani Gaidinliu was born to Lothonang Pamei (father) and Kachaklenliu (mother) in Longkao (Nungao) village of Manipur. She was the 5th child among her six sisters and a brother. Since her childhood days, Gaidinliu was known for her dynamic, multifaceted and virtuous personalities.

The year Rani Ma was born, Manipur, along with rest of the country was the victim of British colonial rule. In 1927, when she was just 13 years old, she met prominent local leader Haipou Jadonang at Puilon Village. And persuaded by his ideologies and principles, she launched the revolutionary movement against the British in the same year.

In 1931, while returning with Gaidinliu from 'Bhubon Cave' in Cachar after worshiping God, Jadonang was captured by the British. After he was hanged on Aug 29, 1931, by the British, Gaidinliu took over the leadership and challenged the British officials. When The British Govt. tried to suppress her movement, she went underground.

The army made a house to house search. Though the British announced a reward of Rs 500 to anybody who would inform them about her whereabouts, the entire village stood together in support of Rani. Finally the British Govt. captured her on 17 October, 1932 in Poilwa (Pulomi) Village (present Nagaland), and sentenced her to life imprisonment. Rani Gaidinliu was just 16 years old then.

Pandit Jawaharlal Nehru met her at Shillong Jail in 1937 and described Gaidinliu as the daughter of the Hills and gave her the title of “Rani Gaidinliu” or Queen of her people. 

After serving the prison term of 14 years in various jails in Guwahati, Aizawl,Tura, Shillong and elsewhere, 'Rani Ma' was freed in 1947 after India gained freedom. She was however not allowed to return home at her native village in Manipur that she stayed at Vimrap Village of Tuensang with her younger brother Marang till 1952. It was a tearful re-union of sister and brother when they could not communicate well in their mother tongue at that time. (Due to long separation of nearly 2 decades).

After her release she organised a resistance movement against the Naga National Council (NNC) )-led insurgents in 1966 and had to go underground again. On the request of Central government and state governments of Nagaland and Manipur, she came over-ground and stayed in Kohima from 1966 to 1992.

The travesty is that she was not allowed to visit her people for whose freedom, religion and culture she sacrificed her prime of youth. Same reason was given that if she was allowed to return to her 'Heraka' people, the movement for preservation, protection and promotion of her forefather’s religion and eternal culture would catch-up momentum. A section the Naga society, who was under deep influence of christianity, was opposed to 'Heraka movement' and Rani Gaidinliu. Rani Ma was kept in Yimrup village of Tuensang district; nearly 300 km away from her people.

It was a matter of regret that leaders of Nagaland condemned her as ‘kampai’ (kachcha Naga) and Christian missionaries cursed her as the worshiper of the 'satan' (devil) and heathen.

Rani Ma reformed the traditional relilgion and named it “Heraka” which means “Pure”. She propounded the worship of philosophical God —

the Almighty. She evolved the scientific mode of celebration of various traditional festivals of Nagas. There lies the greatness of Rani Gaidinliu.

“Invasion by foreign religion and foreign culture will pose danger to Naga identity. Beware of this danger”.
—Rani Gaidinliu had said.