Saturday, May 12, 2012

Anjali Gopalan.................अंजलि गोपालन


Anjali Gopalan.................अंजलि गोपालन 



Anjali Gopalan
We all heard of West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee making it to the Time magazine's list of the 100 most influential people in the world. Another Indian to make it to the coveted list is advocate and gender rights activist Anjali Gopalan.

अंजलि गोपालन 
हम सबने सुना हैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को दुनिया के 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में जगह दी गई है। टाइम मैगजीन की ताजा सूची में जिस दूसरे भारतीय का नाम हैं वो हैं अंजलि गोपालन | वे भारत में एचआईवी या एड्स के मरीजों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। 

भारत में एचआईवी या एड्स के मरीजों को संभवत: अलग-थलग रखा जाता है, लेकिन ब्रुकलिन से नई दिल्ली आईं अंजलि का जीवन ऎसे ही लोगों को समर्पित है। पेशे से वकील अंजलि समलैंगिकों के अधिकारों और यौनउत्पीडित लोगों के लिए भी आवाज उठाती रही हैं।

अंजलि गोपालन एक वो महिला है जिसने पत्रकारिता में नाम कमाना चाहा | अपनी कलम की ताकत से समाज को एक नयी दिशा देना चाहती थी पर अचानक ही एच.ई.वी से प्रभावित लोगों के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया | यहाँ तक की माँ नहीं बनने का फैसला कर लिया क्यूंकि जीवन का लक्ष्य था पीड़ितों की मदद करना | आज वह जिस मोकाम पर है यहाँ तक पहोचने के लिए उन्होंने मानसिक व सामाजिक तौर पर काफी संघर्ष किया है | आज से १७ साल पहेले जब अंजलि अमेरिका से लोट कर भारत में अपने काम की शुरुवात की तो ऐसा लगा कि वह जैसे पत्थर पर सर घिस रही है | भारत की जो संस्कृति है और जीवन जीने का जो सामाजिक ढाचा है उसमें खुलापन कम और नैतिक विश्वास का आधार ज्यादा है | ऐसे में अंजलि ने एच.ई.वी व एड्स पीधितों के लिए काम करना शुरू किया तोह उनके मन में ख्याल आया की क्यूँ न लोग एच.ई.वी के संपर्क में न आये | इसकी शुरुवात उन्होंने गृहिनियों के साथ की | अंजलि कहेती है प्रशनों का उत्तर देना और सामने वाले को संतुष्ट बहुत ही मुश्किल काम था लेकिन अंजलि ने भी कमर कस ली थी की उन्हें सफलता पानी थी और इसका नतीजा है नाज फाउनडेशन इस फाउनडेशन का तालुक सिर्फ एच ई वी + स्त्री और पुरुषों से ही नहीं बल्कि बच्चें व हर उस व्यक्ति के साथ है जिसको हमारी ज़रुरत है | 

राजनीति शास्त्र में एम् ए के साथ आई आई एम् सी से पत्रिकारिता में इनटरनेशनल डेवेलपमेट में पी जी डिपलोमा करने बाद अंजलि ने पी.टी. आई व दूरदर्शन में काम किया पर अपने कम से उन्हें संतुष्टि नहीं हुई |इसलिए पीटीआई और दूरदर्शन में काम करने के बाद किस्मत उन्हें एक ऐसी मुहिम में अमेरिका ले गई, जिसने उनके सोचने और काम करने का तरीका ही बदल दिया। पहले अमेरिका और फिर भारत में कुल मिलाकर अठारह साल की मुहिम में अंजलि गोपालन ने समलैंगिकों और एचआईवी-एड्स पीड़ितों के हक में जैसी लड़ाई लड़ी, वह अपनी मिसाल आप है।

चर्चित अमेरिकी पत्रिका टाइम ने दुनिया की सौ महत्वपूर्ण शख्सियतों में शुमार करते हुए उनकी प्रशस्ति में लिखा है- 'नाज फाउंडेशन के जरिये गोपालन ने भारत में समलैंगिकों और यौन अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए किसी और की तुलना में ज्यादा काम किया है।' जिस देश में एड्स से पीड़ित होना सामाजिक बहिष्कार की वजह बनता है और जहां समलैंगिकों के हक में आवाज उठाने को भी अशालीन माना जाता है, वहां इस तरह की सामाजिक मुहिम चलाना, वह भी एक स्त्री द्वारा, आसान काम नहीं था।

उन्होंने 1994 में दिल्ली में देश की पहली एचआईवी/एड्स क्लिनिक की स्थापना की थी। उसके सात साल बाद एचआईवी/एड्स से पीड़ित अनाथ बच्चों के लिए उन्होंने देश का पहला केयर होम स्थापित किया, जिसमें अभी करीब 30 बच्चे रहते हैं। इनमें से ज्यादातर ऐसे एड्सपीड़ित बच्चे हैं, जिन्हें उनके परिवार वाले छोड़ गए थे। करीब तीन साल पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को असांविधानिक बताते हुए समलैंगिकों के हक में जो फैसला दिया था, उसके पीछे अंजलि गोपालन और उनकी संस्था का ही उद्यम था।

शुरू में न्यायालय ने उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, लेकिन उनकी अनथक कोशिशों को देख अदालत ने ऐतिहासिक पहल की। चाहे वह महिलाओं को यौन रोगों से दूर रहने की सलाह देनी हो, लोगों को अपने समलैंगिक बच्चों को स्वीकारने का सामाजिक दबाव बनाना हो या एड्स पीड़ित बच्चों के सिर पर ममता भरा हाथ रखते हुए उन्हें जीवन की मुख्यधारा में शामिल करने का काम हो, नाज फाउंडेशन ने इन तमाम क्षेत्रों में विलक्षण काम किया है। एड्स पीड़ितों के अलावा अंजलि आवारा कुत्तों को भी शरण देती हैं। उनकी इन्हीं उपलब्धियों को देखकर केंद्र सरकार ने 2007 में उन्हें सम्मानित किया था।

नाज के आश्रम में इस वक्त ३० बच्चे है | कुछ अनाथ तो कुछ एच.ई.वी से प्रभावित है | इन बच्चो को खाना , पढाई और दूसरी चीज़ें बिलकुल मुफ्त उपलब्ध कराइ जाती है | अंजलि हर रोज़ इन बच्चो के साथ और यहाँ इलाज के लिये आने वाले स्त्री, पुरुष के साथ समय गुज़रती है | अंजलि का कहना है कि यही उसका परिवार है और उसकी हर ज़रुरत को पूरा करना उसका लक्ष्य है और उनके इस फैसले में उनके पति व परिवार वालो ने पूरा साथ दिया | नाज को चलने के लिये पहेले उनके पिता ने उनकी सहायता की और आज देश ही नहीं बल्कि विदेशो से भी आर्थिक सहायता मिल रही है | अंजलि एड्स पीढित को मुफ्त शिक्षा देने के साथ साथ एड्स जागरूकता को लेकर जगह जगह कैंप लगाती है |


Anjali Gopalan

A pioneer in the field of HIV prevention and care in India, Anjali Gopalan has stepped in to fill the deepest gap that exists in preventive and curative work in India today, by designing a model for an integrated system in children’s care facilities which includes HIV+ children.

With a Masters in International Development and another in Journalism, Anjali worked for many years with community-based organizations in New York City; providing direct services for HIV/AIDS and substance abuse issues. Circumstances led her to live and care for a friend with HIV, giving her first-hand knowledge and insight into the issues affecting HIV+ people. Returning to India in the early 1990s Anjali saw a tremendous gap in AIDS prevention and care services. Drawing upon her work with community groups in the U.S., Anjali founded the Naz Foundation Trust.
Working at the grass-roots level, Anjali understands that AIDS has reached epidemic proportions in India. Yet funding, government and media attention goes to states with the highest prevalence, and to groups that are deemed high-risk, such as sex workers and truck drivers. “The situation is skewed,” explains Anjali, “The messages coming from the media and the government is that the general population is not at risk.” Anjali’s role has been to raise money and awareness for these populations left out of national AIDS policy. For example, creating information that addresses the needs of women has been a major focus of her work at the Naz Foundation; the board comprises health economists, doctors, businessmen, and lawyers. 
Her work with children began quite by accident. Six years ago a child with HIV was abandoned at the Foundation’s office, and they couldn’t find an institution or hospital to take him. Anjali was forced to look after the child, which enabled her learn how dire the situation was for HIV+ children. This experience resulted in the Center, which is today home to thirty children. The actor Richard Gere funded the organization for three years, until she received a large endowment from her deceased brother to create a home for the children. 
Currently, Anjali spends a lot of time fundraising, advocating for systemic change, and in trainings; the daily logistics of running the care home has been given to her colleagues. Apart from being the Founder and CEO of Naz Foundation and Naz Care Home, she is on the board and advisory panels of several national and international organizations including International AIDS Vaccine Initiative, the NGO Core Group of the National Coalition for Health Initiatives, and the Resource Centre for Legislators.

Anjali currently lives and works in Delhi.Anjali`s Naz Foundation, a citizen organization (CO) it offers a range of prevention, support, and care programs that meet the needs of underserved populations around sexual identity and related issues, especially for women and MSM (men having sex with men) groups. Anjali is widening the scope of HIV prevention and care services by demonstrating how HIV+ children can be mainstreamed in existing home child-care and facilities. This is a necessity in a resource impoverished country like India, and will be beneficial to both the government and society. Anjali is building nationwide awareness around care of orphaned and vulnerable HIV+ children. Initially, she has prepared a training manual and provides training programs to build the capacity and skills of state and CO residential institutions providing care to children with AIDS—reducing stigma and discrimination. The project seeks to provide more opportunities for the care and support of HIV+ children in their residences. Anjali’s program monitors and is able to detect infections and effective treatment; admission of abandoned children who are denied adoption due to their HIV+ status, with special focus on the girl child who is doubly discriminated against by families who lay greater premium on the boy child; maintain confidentiality regarding their status; ensure their right to education and adequate healthcare; lobby for laws to protect children with the disease; sensitize officials, doctors, teachers, and care-givers at all levels; and last, but not the least, cater to the affected children’s unique psychosocial needs. She has also created a home-based care program to train families in care-giving. Anjali believes a child should only be placed in institutional care if orphaned, and she will not admit children with extended families. The home-based care program—which currently supports 350 families—is designed to ultimately empower communities to respond as well as possible to the epidemic.

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