Friday, August 5, 2011

Maharani Ahilyabai Holkar...महारानी अहिल्याबाई होलकर



महारानी अहिल्याबाई होलकर

सर्वजन कल्याणकारी प्रथम भारतीय महिला शासिका !!!

सही मायनों में समाजसुधारक गतिविधियों की शुरुआत अंगरेजी शासनकाल में महात्मा फुले ने की। इसी आदर्श को लेकर छत्रपति शाहू महाराज, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, रामासामी पेरियार, नारायण गुरु, अण्णाभाऊ साठे, कर्मवीर भाऊराव पाटिल ने भी समाज सुधार के कार्य किए। इसके पहले धर्म की सत्ता गिने चुने लोगों के हाथ में थी। भारतीय स्त्री किसी भी धर्म या जाति की हो, उसके साथ शूद्रवत व्यवहार किया जाता था। पति के साथ सती होना ही पुण्य का काम था। महाराष्ट्र में पेशवाई शासन में हिन्दवी स्वराज्य की धूमधाम थी। ऐसे समय में महान क्रन्तिकारी महिला शासिका महारानी अहिल्याबाई होल्कर का उद्भव हुआ ।

अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को अहमदनगर जिले के चौंडी नाम के गांव में हुआ । अटक के पार शिवराया की हिन्दवी पताका फहराने वाले तथा मध्यप्रदेश में हिन्दवी स्वराज्य के स्थापक महान योद्धा मल्हारराव होलकर इनके श्वसुर थे । इन्होंने प्रजाहितकारी व सुखशांति पूर्ण राज्य की स्थापना की। राज्य के उत्तराधिकारी खंडेराव होल्कर की मृत्यु हो गई। धर्म व रूढि के अनुसार अहिल्याबाई के सती होने की नौबत आ गई, किन्तु जनता के हितार्थ निर्माण किए गए राज्य को पेशवा के हाथों में चले जाने पर प्रजा को होने वाले भयंकर कष्ट को देखते हुए मल्हार राव होल्कर ने धर्म की पाखंडी परंपरा तोड़ते हुए अहिल्याबाई को सती होने से रोका और राज्य की बागडोर भी अहिल्याबाई को सोंपने का कार्य किया। “मेरी मृत्यु हो जाने पर मुझे सुख मिलेगा किन्तु मेरे जीवित रहने पर लाखों प्रजाजनों को सुख मिलेगा, ऐसा मानते हुए और लोकनिन्दा की परवाह न करते हुए अहिल्याबाई ने धर्म के पाखंड के विरुद्ध यह पहला विद्रोह किया। धर्म के नाम पर भारतीय स्त्री को शिक्षा व राज्य करने का अधिकार नहीं था। इसके विरुद्ध भी अहिल्याबाई ने दूसरा विद्रोह करते हुए राज्य की सत्ता स्वयं सँभाल ली। यही नहीं, श्वसुर, पति, पुत्र की मृत्यु होने पर भी मनोधैर्य न खोते हुए उन्होंने राज्य का सफल संचालन किया। प्रजा को कष्ट देने वालों को पकड़कर उन्हें समझाने की कोशिशें कीं तथा उन्हें जीवनयापन के लिए जमीनें देकर सुधार के रास्ते पर लाया गया, जिसके फलस्वरूप उनके जीवन सुखी व समृद्ध हुए। प्रजा से न्यूनतम कर वसूला गया ताकि प्रजा को कर बोझ समान न लगे। कर से प्राप्त धन का उपयोग केवल प्रजाहित के कार्यों में ही किया गया। अहिल्याबाई का मानना था कि धन, प्रजा व ईश्वर की दी हुई वह धरोहर स्वरूप निधि है, जिसकी मैं मालिक नहीं बल्कि उसके प्रजाहित में उपयोग की जिम्मेदार संरक्षक हूँ । उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में अहिल्याबाई ने प्रजा को दत्तक लेने का व स्वाभिमान पूर्वक जीने का अधिकार दिया। प्रजा के सुख दुख की जानकारी वे स्वयं प्रत्यक्ष रूप प्रजा से मिलकर लेतीं तथा न्याय-पूर्वक निर्णय देती थीं। उनके राज्य में जाति भेद को कोई मान्यता नहीं थी व सारी प्रजा समान रूप से आदर की हकदार थी। इसका असर यह था कि अनेक बार लोग निजामशाही व पेशवाशाही शासन छोड़कर इनके राज्य में आकर बसने की इच्छा स्वयं इनसे व्यक्त किया करते थे । अहिल्याबाई के राज्य में प्रजा पूरी तरह सुखी व संतुष्ट थी क्योंकि उनका विचार में प्रजा का संतोष ही राज्य का मुख्य कार्य होता है। लोकमाता अहिल्या का मानना था कि प्रजा का पालन संतान की तरह करना ही राजधर्म है । यदि किसी राज्य कर्मचारी ने या उसके नजदीकी परिवारी ने प्रजा से धनवसूली की तो उस कर्मचारी को तुरन्त सजा देकर उसे अधिकार विहिन कर दिया जाता था। समस्त प्रजाजनों को न्याय मिले इसके लिए उन्होंने गांवों में पंचायती व्यवस्था, कोतवालों की नियुक्ति, पुलिस की व्यवस्था, न्यायालयों की स्थापना था राजा को प्रत्यक्ष मिलकर न्याय दिए जाने व्यवस्था थी एवं उसी प्रकार कृषि व वाणिज्य की अभिवृद्धि पर ध्यान देते हुए कृषकों को न्याय देने की व्यवस्था की गई थी । प्रजा की सुविधा के लिए रास्ते, पुल, घाट, धर्मशालाएं, बावड़ी, तलाब बनाये गए थे। बेरोजगारों हेतु रोजगारों धंधों की योजनाएं थीं। रास्तों के दोनों ओर वृक्षारोपण किए गए थे, गरीब तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए अन्नदान क्षेत्र व रहने के लिए धर्मशालाओं के निर्माण किये गए थे। अपने ही राज्य में नहीं बल्कि अहिल्याबाई ने तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए संपूर्ण भारत भर में अन्य राज्यों की सीमांन्तर्गत भी इन सुविधाओं की व्यवस्था की थी।

अहिल्याबाई ने समाज-शत्रुओं व असमाजिक तत्वों पर अंकुश लगाकर उनके भी पुनर्वास की व्यवस्था की । समाज व्यवस्था, राजकाज व न्याय व्यवस्था के विषय में सुधार किए। उनके इन सामाजिक, राजकीय कामों से प्रजा प्रसन्न व संतुष्ट थी, अतः उनका शासन पूर्णतः शान्ति पूर्ण था । राज्यभर में शान्ति व सुख का ऐसा माहौल था, जिसकी चर्चा पंड़ित जवाहरलाल नेहरू ने भी की है। 13 अगस्त 1795 ई. को लोकमाता अहिल्याबाई की मृत्यु हुई

39 comments:

  1. lokmata ahilyabai holkar ko koti koti pranam

    ReplyDelete
  2. अहिल्या मातेला माझा प्रणाम...............

    ReplyDelete
  3. Great Queen of Ahilyabai Holkar pranam

    ReplyDelete
  4. जब तक सूरज चाँद रहेगा लोक माता अहिल्या बाई का नाम रहेगा

    ReplyDelete
  5. ahilyabai is a very great and super queen

    ReplyDelete
  6. Ekch mata ahilya mata....
    Jai ahilya mata...

    ReplyDelete
  7. Ekch mata ahilya mata....
    Jai ahilya mata...

    ReplyDelete
  8. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  9. LOKMATA MAHARANI AHILYADEVINCHA VIJAY ASO...

    ReplyDelete
  10. Jay Malhar....! Rajmata Ahilyadevincha Vijay Aso.. 🌹

    ReplyDelete
  11. AHILYADEVI HOLKAR :THE WARRIOR QUEEN

    ReplyDelete
  12. Hi,
    This is Rajaram Kale. Would like to know more about Devi Ahilya.

    ReplyDelete
  13. The great ahilyabai holkar..jai hind

    ReplyDelete
  14. The great ahilyabai holkar..jai hind

    ReplyDelete
  15. Jay ho virmata ahilyadevi
    ..
    .......

    ReplyDelete
  16. My deep respect to Lok mata Ahilya bai

    ReplyDelete
  17. Jay Ahilya Jay Jijau Jay Shivray

    ReplyDelete
  18. Bharat ki Sabse saphal Mahila Shasak bhi unko kahalate hai.

    ReplyDelete
  19. ahilya bai amar rahe .maa ahilya ki jai ho .,my deep respect to lok mata ahilya ji . sachin pal gurgaon 9891441417

    ReplyDelete
  20. प्रातःस्मरणीय पुण्यश्लोक लोकमाता अहिल्या देवी होल्कर अमर रहे

    ReplyDelete
  21. जय अहिल्यामाता

    ReplyDelete
  22. जय अहिल्यामाता

    ReplyDelete
  23. Jay Jagat Mata Ahilyabai Holkar....

    ReplyDelete
  24. जय मल्हार
    जय माँ अहिल्या
    जय धनघरना

    ReplyDelete