Mary Kom ……….....................…… मैरीकॉम
Mary Kom …………… मैरीकॉम
मेरीकोम भारत की स्टार महिला मुक्केबाज हैं जिन्होंने लंदन ओलम्पिक में हिस्सा लेने की योग्यता हासिल कर ली है। महिला मुक्केबाजी को पहली बार ओलम्पिक में शामिल किया गया है। मेरीकोम ने शुक्रवार को यह योग्यता पाई। मेरीकोम को हालांकि यह योग्यता तोहफे में मिली क्योंकि उनकी उम्मीद मुक्केबाज निकोला एडम्स पर टिकी थी। निकोला ने रूस की येलेना सावेलयेवा को विश्व चैम्पियनशिप के सेमीफाइनल में हराकर मेरीकोम को यह तोहफा दिया। निकोला के हाथों क्वार्टर फाइनल में हारकर ही मेरीकोम छठी बार विश्व खिताब जीतने से चूक गई थीं।
मेरीकोम को एशिया क्षेत्र से उपलब्ध दो सीटों में से एक प्राप्त हुआ। चीन की रेन चानचान 51 किलोग्राम वर्ग में पहले ही क्वालीफाई कर चुकी हैं। उत्तर कोरिया की हेई किम भी इस वर्ग में ओलम्पिक सीट की दौड़ में शामिल थीं। मेरीकोम ने निकोला के मुकाबले के बाद कहा, "मैं इस मुकाबले को लेकर तनाव में नहीं थी। मैं सोच रही थी कि जब मेरे हाथ में कुछ है ही नहीं तो फिर चिंता क्या करना। मैं सिर्फ भगवान के बारे में सोच रही थी। भगवान ने मेरा संघर्ष देखा है और मैं जानती थी कि वह उसे बेकार नहीं जाने देंगे।"
मेरीकोम लन्दन ओलंपिक ( 27 July 2012- 12 August 2012 ) की मुक्केबाजी प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधितव करने वाली हैं | ईश्वर से हम सब यही प्रार्थना करेंगे कि वो ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करे और भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत कर अपना एवं देश का नाम रोशन करे |
Mary KomStar Indian Boxer (51 kilograms category ) . 5 times world champion Achievements
NationalGold - 1st Women Nat. Boxing Championship, Chennai 6-12.2.2001The East Open Boxing Champ, Bengal 11-14.12.20012nd Sr World Women Boxing Championship, New Delhi 26-30.12.2001National Women Sort Meet, N. Delhi 26-30.12.200132nd National Games, Hyderabad 20023rd Sr World Women Boxing Champ, Aizawl 4-8.3.20034th Sr WWBC, Kokrajar, Assam 24-28.2.20045th Sr WWBC, Kerala 26-30.12.20046th Sr WWBC, Jamshedpur 29 Nov-3.12.200510th WNBC, Jamshedpur lost QF by 1-4 on 5.10.2009
AwardsArjuna Award (Boxing), 2004Padma Shree (Sports), 2006Contender for Rajiv Gandhi Khel Ratna Award, 2007People of the Year- Limca Book of Records, 2007CNN-IBN & Reliance Industries' Real Heroes Award 14.4. 2008 MonPepsi MTV Youth Icon 2008‘Magnificent Mary’, AIBA 2008Felicitation by Zomi Students’ Federation (ZSF) at New Lamka YPA Hall in 2008Rajiv Gandhi Khel Ratna award, 2009[24][25]International Boxing Association’s Ambassador for Women’s Boxing 2009 (TSE 30.7.2009 Thur)[26][27]Sportswoman of the year 2010, Sahara Sports Award[28]
मैरी कॉम
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरीकॉम जिन्हें मैरी कॉम के नाम से भी जाना जाता है, एक भारतीय महिला मुक्केबाजहैं। वे मणिपुर, भारत से हैं | वो पांच बार विश्व गैर-व्यावसायिक बॉक्सिंग में स्वर्ण जीत चुकी है । उनकी इस उपलब्धि से प्रभावित होकर एआइबीए ने उन्हें मॅग्नीफ़िसेन्ट मैरी (प्रतापी मैरी) का संबोधन दिया। मैंगते चंग्नेइजैंग मैरीकॉम 1 मार्च 1983 को मणिपुर के एक गरीब किसान परिवार में जन्मीं थी उस वक्त कोई नहीं सोच सकता था कि यह लड़की कभी बोक्सिंग का विश्व खिताब जीतेगी ।
मैरीकॉम की बचपन से ही खेल में रुचि थी.| जब वह लोकतक ईसाई मिशन स्कूल, Moirang में छठी कक्षा और सेंट जेवियर्स स्कूल, Moirang में सातवीं - आठवीं कक्षा में में थी वह एथलेटिक्स में गहरी रुचि लेती थी | मैरी ने तब सोचा कि वो एक दिन एक अच्छी खिलाड़ी बनेंगी |
लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था | आठवीं कक्षा पूरी करने के बाद, मेरी इम्फाल आ गयी और Adimjati स्कूल में अपनी पढ़ाई शुरू कर डी | खेल में बहुत दिलचस्पी होने के कारण , वह हर जगह खेलो के बारे में पूछताछ करती रहती थी | महिला मुक्केबाजी भारत में उस वक्त शुरूआती दौर में थी इसलिए महिला मुक्केबाज भी अपेक्षाकृत बहुत ही कम थी |
उनके मन में बॉक्सिंग का आकर्षण 1999 में उस समय उत्पन्न हुआ जब उन्होंने खुमान लम्पक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुछ लड़कियों को बॉक्सिंग रिंग में लड़कों के साथ बॉक्सिंग के दांव-पेंच आजमाते देखा। मैरी कॉम बताती है कि "मैं वह नजारा देख कर स्तब्ध थी। मुझे लगा कि जब वे लड़कियां बॉक्सिंग कर सकती है तो मैं क्यों नहीं?"साथी मणिपुरी बॉक्सर डिंगो सिंह की सफलता ने भी उन्हें बॉक्सिंग की ओर आकर्षित किया। मैरीकॉम ने यह सब देखकर अपनी पढाई छोड़ने का फैसला किया और उसके साथ ही दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति के साथ रिंग में प्रवेश करने का फैसला किया. बोक्सर डीन्ग्को सिंह के पांचवे राष्ट्रीय खेलों (मणिपुर) में मुक्केबाजी के प्रदर्शन ने उसे काफी प्रेरित किया | एक मुक्केबाज बनने का अपना सपना पूरा करने के लिए, वह भारतीय खेल प्राधिकरण में शामिल हो कर कोच और संरक्षक श्री ईबोम्चा सिंह से गहन प्रशिक्षण लिया |
मैरी कॉम ने सन् 2001 में प्रथम बार नेशनल वुमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती। अब तक वह छह राष्ट्रीय खिताब जीत चुकी है। बॉक्सिंग में देश का नाम रोशन करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 2003 में उन्हे अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया एवं वर्ष 2006 में उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया। जुलाई 29, 2009 को वे भारत के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए (मुक्केबाज विजेंदर कुमार तथा पहलवान सुशील कुमार के साथ) चुनीं गयीं।.मेरी कोम जुझारू एवं जांबाज महिला हैं जिन्होंने विषम से विषम परिस्तिथियों में जिंदगी को जीना सीखा हैं | इसकी एक मिसाल अभी कुछ दिन पहले देखने को मिली जब मणिपुर में आर्थिक नाकेंबंदी चाल रही थी उस वक्त के बारे में विश्व महिला बॉक्सिंग चैम्पियन मेरी कोम का कहना है कि इस विषम परिस्थति में वह किसी तरह ओलम्पिक की तैयारियां कर रहीं और लकड़ियों का इस्तेमाल कर खाना बना रही हैं। दो बच्चों की मां कोम ने कहा कि लकड़ी जलाकर खाना बनाने में काफी समय लगता है और इस वजह से जीवन बहुत कठिन हो गया है। आर्थिक नाकेबंदी की वजह से गैस सिलेंडर बाजार में नहीं मिल रहा है। मैं लकड़ी जलाकर खाना बनाने को मजबूर हूं।
कोम कहती हैं कि इस तरह की परिस्थति में ओलम्पिक को लेकर उनकी तैयारियों पर असर पड़ रहा है। पांच बार की महिला बॉक्सिंग विश्व चैम्पियन रहीं कोम उन हजारों लोगों में से एक हैं, जो इस वर्तमान आर्थिक नाकेबंदी की वजह से प्रभावित हैं। इन लोगों में रोजमर्रा की चीजों की इतनी ऊंची कीमत देने की क्षमता नहीं है।
मणिपुर सरकार ने उसे 2005 में पुलिस के उप निरीक्षक के पद दिया. वह 2008 में पुलिस निरीक्षक के पद पर पदोन्नत किया गया था और फिर 2010 में पुलिस उप अधीक्षक (डीएसपी) के पद पर पदोन्नत किया. उसे उसकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए राष्ट्रीय खेल गांव में एक घर देकर पुरुस्कृत किया|
खेल मेरीकोम के लिए सब कुछ नहीं हैं | अपने खाली समय में वह पारिवारिक एवं सामाजिक उत्सवों में भाग लेती हैं इसके साथ ही युवा लोगों को अपने सपनों का साकार करने के लिए प्रोत्साहित करती रहती हैं |
कोम non-profit ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट के द्वारा समर्थित है इसके अंतर्गत उन्होंने एम सी मैरी कोम मुक्केबाजी फाउंडेशन खोला है जिसमे वो समाज के बिचले तबके के युवाओ को मदद करती हैं |
मरियम ने श्री ओनलर कोम से दिल्ली में मुलाकात के बाद 12 मार्च 2005 शादी कर ली थी | आनलर उन के लिए एक गाइड है, एक दार्शनिक और एक मित्र की तरह है |
मेरी की शुरुआत एक गाँव से हुयी और फिर आज उसकी प्रसिद्धि दुनिया के सब महाद्वीपों में हैं बेशक आज यह एक मात्र परियों की कहानी लगती हो | पर इसके पीछे मेरी का धैर्य , दृढ़ संकल्प और कभी हार न मानने वाला रवैय्या हैं |
आज एक किसान की बेटी अपना अधिकांश मिशन पूरा करते हुए , एक शानदार उदाहरण के रूप में हमारे सामने हैं और इसके साथ ही आज वो लंदन 2012 ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के द्वार पर खडी हैं | क्या ऐसा होगा ये तो भविष्य ही बताएगा पर हम सब की शुभकामनाये हमेशा उनके साथ रहेंगी
Mary Kom
Mangte Chungneijang Mary Kom (M.C.Mary Kom) was born on 1st March 1983 and was brought up in a poor family. It is impossible to imagine that Mary Kom would one day rise and become a World Boxing Champion.
Her family background speaks a lot of how Mary overcame hardship and inconveniences and created a name for herself in the arena of world boxing. Her parents Mr. Mangte Tonpa Kom and Mrs Mangte Akham Kom earned their livelihood by working and being engaged in others jhum fields. Being the eldest, Mary helped her parents work in the fields, cutting woods, making charcoal and fishing. On the other hand, she spent a good time looking after her two younger sisters and a brother.
Mary Kom was interested in sports since her childhood. She took a keen interest in Athletics when she was in class VI in Loktak Christian Mission School, Moirang and class VII- VIII in St.Xavier School, Moirang. Mary thought that she would become a good athlete one day and carve a name for herself in the discipline.
But fate decided otherwise. After completing her class VIII, Mary came to Imphal and continued her studies at Adimjati School. Being so fond of sports, she enquired around and found out about women boxing.
It was a new idea since women boxers were relatively unknown those days. The rise of Dingko Singh and the demonstration of women boxers at the 5th National Games (Manipur) inspired her.
Mary Kom decided to hang up her books and enter into the ring with determination and strong will. To pursue her dream of becoming a world class pugilist, she joined Sports Authority of India, Khuman Lampak and underwent an intensive training from coach and mentor, Shri. Ibomcha Singh.
Seeing Mary’s potential and determination, Manipur State coaches Shri. Narjit Singh and Shri. Kishan Singh decided to take her under their wings. Mary was taught finer details and absorbed it all. The encouragement and support by Shri. Khoibi Salam, Secretary of MABA and Vice President of IABA, and Manipur Boxing Association was also a turning point for Mary Kom.
Manipur Government gave her the post of Sub-inspector of police in 2005. She was promoted to inspector of police in 2008 and again promoted to the post of Deputy Superintendent of Police (DSP) in 2010. She was also given a house at National Games Village without any cost for her outstanding achievements.
Sports are not everything for Mary. In her spare time, she takes pain to attend functions and mingle with the people.The ever-smiling and ready-to-help Mary Kom always encourages young people to chase their dreams and have faith in God.
Kom is supported by the nonprofit Olympic Gold Quest and has opened the M.C. Mary Kom Boxing Foundation for underprivileged youth.
Mary married K.Onler Kom of Samulamlan Block whom she met in Delhi. Onler proved to be a guide, a friend and a philosopher for Mary and they decided to vow each other for lifetime at Manipur Baptist Convention Church on 12th March 2005.
Mary's humble beginning from Kangathei and her fame through continents of the world is a mere fairy tale. However, it was Mary’s grit determination and Never-Say-Die attitude with which she was able to earn laurels far away from her village. Mary Kom's belief in God and herself was what made all the difference.
Today, the farmer’s daughter stands as a shining example of “Mission (almost) Accomplished”. Her most awaited Gold-medal will be at the London 2012 Olympics.
No comments:
Post a Comment