Dr. (Capt.) Lakshmi Sahgal (INA)
(Born : 24 Oct, 1914-23 jul 2012)
The Left's Candidate For President
Padma Vibhushan 1988
डॉक्टर (केप्टन) लक्ष्मी सहगल (जन्म : 24 अक्टूबर, 1914 -23 जुलाई २०१२ )
आजाद हिन्द फौज की 'रानी लक्ष्मी रेजिमेन्ट' की कमाण्डर तथा 'आजाद हिन्द सरकार' में महिला मामलों की मंत्री
भारत के राष्ट्रपति की उम्मीदवार
पद्मविभूषण १९८८
वीरता और मानव सेवा की प्रतीक...कर्नल लक्ष्मी सहगल भारत की उन महान महिलाओं में से एक हैं जो बहादुरी और सेवा भावना दोनों की अद्भुत मिसाल हैं और जो कई मामलों में भारत के इतिहास की प्रथम महिला के रूप में जानी गयी. कैप्टन लक्ष्मी सहगल भारत की एक शेर दिल महिला है .उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित भारतीय राष्ट्रीय सेना (आईएनए) के लिए बन्दूक उठाई और भारत की स्वतंत्रता को पाने के लिए हो रहे संघर्ष में एक शेरनी की तरह नेतृत्व किया था .वे बचपन से ही राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हो गई थीं और जब महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो लक्ष्मी ने उसमे हिस्सा लिया.
आजाद हिंद फ़ौज में महिला सैनिकों के महारानी लक्ष्मी बाई रेजिमेंट की २ जुलाई १९४३ को वह नेता जी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा कर्नल बनाई गयी. इस तरह नियमित फ़ौज में कर्नल का पद पाने वाली एशिया की पहली महिला थी. अर्जी हुकूमते आजाद हिंद सरकार में महिला मामलों की मंत्री बनने वाली कर्नल लक्ष्मी प्रथम महिला थी तो आज़ादी के बाद राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाली प्रथम महिला प्रत्याशी भी कर्नल लक्ष्मी सहगल ही रही. यह एक विडंबना ही है कि जिन वामपंथी पार्टियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान का साथ देने के लिए सुभाष चंद्र बोस की आलोचना की, वे ही लक्ष्मी सहगल को भारत के राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया। लेकिन वामपंथी राजनीति की ओर लक्ष्मी सहगल का झुकाव 1971 के बाद से बढ़ने लगा था। वे अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की संस्थापक सदस्यों में से हैं.
समाज सेवा और देश के लिए कुछ करने की भावना इन्हें अपने परिवार से विरासत में मिली थी. पिता डॉक्टर एस स्वामीनाथन मद्रास हाई कोर्ट में मशहूर वकील थे और माँ ए. वी. अम्माकुट्टी समाज सेवा के कारन पुरे मद्रास में अम्मुकुट्टी की नाम से जानी जाती थी. समाज सेवा को समर्पित इस परिवार में ही २४ अक्टूबर १९१४ को लक्ष्मी स्वामीनाथन का जन्म हुआ.
गरीबो की सेवा करना लक्ष्मी सहगल का जीवन धर्म रहा इसलिए डाक्टरी को इन्होने समाज सेवा का माध्यम बनाया. १९३८ में मद्रास मेडिकल कॉलेज से इन्होने एम् बी बी एस की डिग्री और गायेनोकोलोगी में डिप्लोमा लिया और सन १९४० में भारतीय मजदूरों की सेवा करने के उद्देश्य से ये सिंगापुर चली गयी. यहाँ आकर इन्होने अपना क्लिनिक खोला. और थोड़े ही समय में भारतीय समाज में काफी लोकप्रिय हो गयी.
स्थानीय इंडियन इंडीपेनडेंस लीग की आप सक्रिय सदस्य बनी और इस दौरान इन्होने ब्रिटिश फौज के भारतीय युद्ध बंदियों की काफी सेवा की. यह वह दौर था जब ब्रिटिश सेना को जापानी सेना के आगे समर्पण करना पड़ा था. इन भारतीय युद्ध बंदियों में अपने देश की आजादी के लिए अंग्रेजो से लड़ने का जज्बा जब लक्ष्मी सहगल ने देखा तो जब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस सिंगापुर की एतेहासिक जनसभा को संबोधित करने आये तो लक्ष्मी सहगल ने व्यक्तिगत रूप से नेता जी से मिलकर युद्धबंदियों से अवगत कराया. इतना ही नहीं रबर कंपनीयों में काम करने वाले भारतीय मजदूरों की पत्नियों को भी आजादी की जंग में शामिल करने के लिए वो तैयार कर चुकी थी. नेता जी ने न केवल युद्धबंदियों को आज़ाद हिंद फौज में शामिल कर लिया बल्कि महिला सैनिकों के लिए भी एक अलग रेजिमेंट की स्थापना कर दी. रानी झासी रेजिमेंट के कर्नल का पद डाक्टर लक्ष्मी सहगल को ही दिया गया .
तीन महीने की सैनिक ट्रेनिंग के बाद भारतीय मजदूरों की पत्नियां प्रशिक्षित सैनिक बन चुकी थी. इस रेजिमेंट में एक हज़ार महिला सैनिक और २०० नर्से शामिल थी. डाक्टर लक्ष्मी सहगल जहाँ सैनिकों की सेवा करके डाक्टरी का फ़र्ज़ निभा रही थी वही मोर्चे पर लड़कर एक बहादुर सिपाही की भूमिका भी अदा कर रही थी. नेता जी ने जब इनकी कार्य कुशलता देखी तो अर्जी हुकूमते आज़ाद हिंद सरकार में महिला मामलों का मंत्री इन्हें बना दिया.
विमान दुर्घटना में सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के बाद आज़ाद हिंद सरकार भंग हो गयी और ४ मार्च १९४६ को अंग्रेजो ने लक्ष्मी सहगल को गिरफ्तार कर लिया, गिरफ्तारी के बाद जब उन्हें भारत लाया गया तो पूरे देश की जनता ने इस वीर महिला का भव्य स्वागत किया. अखबारों ने विशेषांक निकले और जगह जगह स्वागत सभाए हुई. इनकी लोकप्रियता को देखकर अंग्रेजो को इन्हें रिहा करना पड़ा. इनके पति कर्नल प्रेम कुमार सहगल भी स्वतंत्रता सैनिकों के साथ लाल किले में कैद थे, अंग्रेजो को इन्हें भी रिहा करना पड़ा.
पति पत्नी ने कानपुर आकर अपना क्लिनिक खोला- डाक्टर लक्ष्मी सहगल क्लिनिक एंड मैटरनिटी होम, यह अस्पताल आज गरीबों का तीर्थ बन चुका है. आज भी ठीक दस बजे क्लिनिक में मौजूद आँखे डाक्टर लक्ष्मी सहगल को ही ढूँढती है.
भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से जितने शरणार्थी कानपुर आये डाक्टर लक्ष्मी सहगल ने तन मन धन से उनकी सेवा की. सन २००२ में जब बंगलादेश का विभाजन हुआ तब कलकत्ता जाकर शरणार्थियों के लिए शिविर लगाये. डाक्टरी के माध्यम से समाज सेवा करना ही इनका संकल्प है सामाजिक न्याय में इनकी आस्था इतनी गहरी है की एक बार २ शादी के कार्ड १ ही दिन के लिए इनके पास पहुचाये गए. एक कार्ड गरीब का था और दूसरा धनवान व्यक्ती का. डाक्टर लक्ष्मी सहगल गरीब के ही घर गए. कहा, अमीर के घर जाने को तो सब लालायित रहते है गरीब के घर कौन जायेगा ? स्वतंत्रता संघर्ष और समाज सेवा के क्षेत्र में इनकी उलेखनीय सेवाओ को देखते हुए सन १९९८ में भारत के राष्ट्रपति द्वारा इन्हें पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया. आज भी 15\241,सिविल लाइन आज भी स्वंत्रता संग्राम और मानव सेवा का प्रेरणादायक जीवंत स्मारक बनकर आने वाली पीढियों के लिए एक अद्भुत प्रेरणा का केंद्र बना हुआ है.
अफसोस की बात है कि आजादी के ६ दशकों के बाद भी , अपने जीवन की शरद ऋतु में, उनमे निराशा की भावना है. उनके अनुसार आज़ाद भारत में आईएनए को उसका वो स्थान नहीं मिला जो होना चाहिए था .वो आगे बताती हैं कि नेताजी ने हमेशा स्वतंत्रता के तीन भागों की बात की थी:. राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक जिसमे पहली हमने हासिल की, अभी दो तरह की स्वतंत्रता अभी बाकी है , महिलाओं की स्थिति अभी भी दुर्भाग्यपूर्ण है सामाजिक बुराइयों बेरोकटोक जारी है जाति व्यवस्था अभी भी पनपती है .बाल विवाह अभी भी जगह हो रहे हैं और दहेज हत्या अभी भी हो रही हैं. जो सामाजिक परिवर्तन के सपने नेताजी ने देखे थे वो आज के उपभोक्तावाद के युग में भोगिवादी सामग्री को इकट्ठा करने की चाह के नीचे दब गए हैं कुचल गए हैं
युग दधीचि देहदान अभियान से जुड कर सुभाष चंद्र बोस की अनन्य सहयोगी कैप्टन डा. लक्ष्मी सहगल ने नेत्रदान व देहदान संकल्प लिया और जीवन के साथ भी, जीवन के बाद भी देश व समाज सेवा की भावना को चरितार्थ कर दिया .
डॉक्टर लक्ष्मी सहगल की बेटी सुभाषिनी अली जिसका नाम उन्होंने अपने प्रिय नेता सुभाष चंद्र जी के नाम पर रखा था 1989 में कानपुर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद भी रहीं
धार्मिक कट्टरता, पुरुष दुराग्रह, जाति और आर्थिक शोषण के मध्य से अपना रास्ता बनाते हुए उन्होंने सभी भारतीयों के लिए एकता और समानता के आईएनए के जीवंत आदर्शों को रखने के काम जारी रखा . उनकी आजादी के लिए यह तड़प आज भी जीवित है. और वो आग अभी भी उनके अंदर जल रही है .
Dr. (Capt.) Lakshmi Sahgal (INA)
Captain Laxmi Sehgal is one of the lion hearted women, India ever had. She picked up the Gun for the Indian National Army (INA) founded by Netaji Subash Chandra Bose and led it like a tigress for the struggle for Indian freedom.
Lakshmi Sahgal was born Lakshmi Swaminadhan on 24.10.l914 in what was then still called Madras. Her father was Dr. S. Swaminadhan, a brilliant and leading lawyer practising criminal law at the Madras High Court. Her mother was A.V. Ammukutty, a social worker, freedom fighter and tireless campaigner for women's rights who successfully contested elections to the Madras Municipal Corporation, the Constituent Assembly, the Lok Sabha and Rajya Sabha. She also served as National President of the All India Women's Conference.
As a young girl, Lakshmi participated enthusiastically in nationalist programmes of burning of foreign goods, including her own clothes and toys and picketting of liquor-vends. She decided to study medicine not from the point of view of embarking upon a successful career but because she wanted to be of service to the poor, especially to poor women. As a result, she received the MBBS degree from Madras Medical College in l938. A year later, she received her diploma in gynecology and obstetrics.
In l940, Lakshmi left Madras for Singapore. Here she quickly established a clinic where the poorest of the poor, especially migrant Indian labour, could receive medical treatment. Not only did she establish herself as a successful, compassionate and extremely competent doctor, but she played an active role in the India Independence League which contributed greatly to the freedom movement in India.
In l942 came the historic surrender of Singapore by the British colonial power to the Japanese. Lakshmi was kept extremely busy tending to the many casualties and injuries that resulted from skirmishes. She also came in contact with many of the India POWs who were deliberating over the Japanese proposal to form an Indian army of liberation. She was extremely enthusiastic about this possibility and argued strongly in its favour. As a result, she was very much part of the deliberations that finally resulted in the formation of the INA under Gen. Mohan Singh.
Events moved very fast with the arrival of Subhas Chandra Bose in Singapore on 2nd July, l943. In the next few days, at all his public meetings, Netaji, as he was popularly known as, spoke of his determination to raise a women’s regiment, the Rani of Jhansi regiment, which would also fight for Indian independence and make it complete. On the 5th of July he spoke to Shri Yellappa, and enquired whether there was any Indian woman in Singapore who would be suitable for the task of leading such a regiment. Shri Menon immediately suggested Lakshmi’s name. Netaji insisted on meeting her immediately and she was brought to meet him quite late the same night. As soon as he put his proposal to her, she accepted it without a moment’s hesitation and, the very next day, she closed her clinic and began preparations for the formation of the Rani of Jhansi Regiment of the INA.
These preparations were underway very soon and, in a short time, a well-trained fighting force of women recruits took shape. On 21st October, l943, when the Provisional Government of Azad Hind was announced, Lakshmi was the sole woman member of its Cabinet.
The Rani of Jhansi Regiment saw active duty on the front. Lakshmi who was given the rank of Colonel, although in the popular imagination she remained ‘Captain Lakshmi’ was active both militarily and on the medical front. She played a heroic role not only in the fighting but during the terrible days that INA personnel were hunted by the victorious British troops and saved many lives because of her courage and devotion. She was finally captured and brought to India on 4th March, l946 when she received a heroine’s welcome. The British authorities realised that keeping her a prisoner would be counter-productive and she was released.
After her release, Capt. Lakshmi campaigned tirelessly for the release and rehabilitation of imprisoned and de-mobbed INA personnel and for the freedom of India. She travelled the length and breadth of the country and was able to collect huge funds for the INA soldiers and also mobilise people against the colonial power.
After the release of the prisoners, including Col. Prem Kumar Sahgal, from the Red Fort the campaign for freedom continued. In March 1947, Col. Sahgal and Capt. Lakshmi were married in Lahore (Col. Sahgal was the son of Justice Achhru Ram Sahgal, a member of the Punjab High Court Bench who was one of the judges in the Gandhi Murder Case). After their marriage, they settled down in Kanpur.
In Kanpur, Lakshmi plunged into her medical work almost immediately because the influx of refugees started even before August, l947 when it became a flood. She worked tirelessly among them for several years. Later on she established a small maternity home in a hired premise where it continues till today. Her compassion and service to the poor have become legendary in the city.
In l971, when huge numbers of refugees came from what was East Pakistan into West Bengal, Lakshmi worked at a camp in Bongaon for several months.
After this, she became very active in left politics and in, first, the trade union and, then, the women's movement although she never neglected her medical work. When the All India Democratic Women's Association was formed in l981, she became Vice-President of the largest women's organisation in the country and has been actively involved in its activities, campaigns and struggles ever since.
In October, l984, when anti-Sikh riots broke out in the city in the wake of Smt. Indira Gandhi’s assassination, she came out on the streets in defence of Sikh families and shops near her clinic and did not allow any of them to be harmed.
In l998, she was awarded the Padma Vibhushan by the President of India
Today, at 87, she still leaves for her maternity home at 9.00 every morning, seven days a week and works till late in the afternoon. Adulation and awards mean very little to her. Her unassuming manners and modesty are a source of amazement and inspiration. Her untiring and undying commitment to humanity and its service are truly exceptional.
Her daughter Subhashini Ali, who has been named after her hero Subhas, also works for the rights of women through the All India Democratic Women's Association. AIDWA is an organisation which Sahgal has been involved with for the last two-and-a-half decades. Her mother has certain striking traits of which Subhashini, a former member of Parliament from Kanpur, is proud.
Inching her way through religious bigotry, male chauvinism, caste and economic exploitation, she continues to keep alive the INA's ideals of unity and equality for all Indians. Her yearning for freedom lives on. The fire still burns.
Dr. Capton Lakshmi Sahgal >> ONE OF MY GREAT & IDEAL INSPIRATION TO WHOM I PERSONALY MET SO MANY TIMES AS MY WHOLE FAMILY IS WORKING IN THE SAME WOMAN ORGANISATION "AIDWA".WE HAVE VERY CLOSE FAMILY RELATIONSHIP WITH LAKSHMI SAHGAL JI AND SUBHASHINI ALIJI. GREAT SALUTE TO BOTH GREAT LADIES OF INDIA.THEY WILL ALWAYS BE THE IDEAL LEADER AND GREAT INSPIRATION FOR THE WHOLE INDIA AND THE WHOLE WORLD.
ReplyDeleteLET'S KNOW ABOUT HER GREAT LIFE >> ALL ARE INVITED TO READ HER MOST INSPIRED LIFE STORY >>>>>> ALL ARE MOST WELCOME TO READ THIS BLOG AND LETS KNOW EVERYONE ABOUT THE GREAT LIFE STORY OF CAPTON LAKSHMI SAHGAL.
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